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________________ विषय-वस्तु अन्य आगमों की अपेक्षा प्रस्तुत आगम अधिक विशाल है। विषयवस्तु की दृष्टि से भी इसमें विविधता है। विश्व विद्या की ऐसी कोई भी अभिधा नहीं है जिसकी प्रस्तुत आगम में प्रत्यक्ष या परोक्षरूप में चर्चा न की गई हो। इस आगम के प्रति जनमानस में अत्यधिक श्रद्धा रही है जिसके फलस्वरूप व्याख्याप्रज्ञप्ति के पूर्व भगवती यह विशेषण प्रयुक्त होने लगा और शताधिक वर्षों से तो भगवती यह विशेषण न रहकर स्वतंत्र नाम हो गया है। वर्तमान में व्याख्याप्रज्ञप्ति की अपेक्षा भगवती नाम अधिक प्रचलित है । 1: अंग साहित्य : एक पर्यालोचन ११३ समवायांग में बताया गया है कि अनेक देवताओं, राजाओं व राजर्षियों ने भगवान से नाना प्रकार के प्रश्न पूछे। भगवान ने उन सभी प्रश्नों का विस्तार से उत्तर दिया। इसमें स्वसमय-परसमय, जीव, अजीव, लोक, अलोक आदि की व्याख्या की गई है। आचार्य अकलंक 3 के अभिमतानुसार प्रस्तुत आगम में 'जीव है या नहीं' इस प्रकार के अनेक प्रश्नों का निरूपण किया गया है। आचार्य वीरसेन का कथन है कि व्याख्याप्रज्ञप्ति में प्रश्नोत्तरों के साथ ही साथ ६६ हजार छिनछेदनयों" से ज्ञापनीय शुभ और अशुभ का वर्णन है । प्रस्तुत आगम में एक श्रुतस्कन्ध, १०१ अध्ययन, १० हजार उद्देशनकाल, १० हजार समुद्देशनकाल, ३६ हजार प्रश्न और उनके उत्तर, २८८००० पद और संख्यात अक्षर हैं । व्याख्याप्रज्ञप्ति की वर्णन परिधि में अनंत गम, अनंत पर्याय, परिमित त्रस और अनन्त स्थावर आते हैं । १ महायान बौद्धों में प्रज्ञापारमिता जो ग्रन्थ है उसका अत्यधिक महत्व है अतः अष्ट प्राहंसिका प्रज्ञापारमिता का अपर नाम भगवती मिलता है । - देखिये - शिक्षा समुच्चय, पृ० १०४-११२ २ समवायांग सूत्र ९३ । ३ तत्वार्थं वार्तिक ११२० । ४ कषायपाहुड, मा० १, पृ० १२५ । ५. वह व्याख्या पद्धति, जिसमें प्रत्येक श्लोक और सूत्र की स्वतंत्र व्याख्या की जाती है और दूसरे श्लोकों और सूत्रों से निरपेक्ष व्याख्या भी की जाती है । वह व्याख्या पद्धति छिन्नछेदनय के नाम से पहिचानी जाती है।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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