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५. व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवतीसूत्र) नामकरण
द्वादशांगी में व्याख्याप्रज्ञप्ति का पांचवां स्थान है। प्रश्नोत्तर शैली में लिखा होने से प्रस्तुत आगम का नाम व्याख्याप्रज्ञप्ति है। समवायांग'
और नन्दी में लिखा है कि व्याख्याप्रज्ञप्ति में ३६ हजार प्रश्नों का व्याकरण है । दिगम्बर ग्रन्थ तत्त्वार्थवार्तिक, षट्खंडागम' और कषायपाहुड' में लिखा है कि व्याख्याप्रज्ञप्ति में ६० हजार प्रश्नों का व्याकरण (कथन) है। इसका प्राकृत नाम 'वियाहपण्णति' है। प्रतिलिपिकारों ने विवाहपण्णति और वियाहपण्णति दिया है किन्तु वृत्तिकार आचार्य अभयदेव ने वियाहपण्णति का अर्थ करते हुए लिखा है कि गौतमादि शिष्यों को उनके प्रश्नों के उत्तर में भगवान महावीर ने अत्युत्तम विधि से जो विविध विषयों का विवेचन किया है वह सुधर्मास्वामी द्वारा अपने शिष्य जम्बू को प्ररूपित किया गया जिसमें विशद विवेचन किया गया हो वह व्याख्या-प्रज्ञप्ति है।
१ समवायांग, सूत्र ६३। २ नन्दी सूत्र ५५। ३ तत्त्वार्थवार्तिक १२२० । ४ षट्खंडागम, खण्ड १, पृ० १०१। ५ कषायपाहुड, प्रथम खण्ड, पृ० १२५ । (क) "वि-विविधा, आ-अभिविधिना, ख्या-ख्यानानि भगवतो महावीरस्य गौतमा
दीन् विनेयान् प्रति प्रश्नित पदार्थ प्रतिपादनानि व्याख्याः ताः प्रज्ञाप्यन्ते,
भगवता सुधर्मस्वामिना जम्बूनामानममि यस्याम् ।" (ख) विवाह-प्रज्ञप्ति-अर्थात् जिसमें विविध प्रवाहों की प्रज्ञापना की गई है
वह विवाहपण्णत्ति है। (ग) इसी प्रकार 'विवाहपग्णत्ति' शब्द की व्याख्या में लिखा है-वि-बाधा
प्राप्ति' अर्थात् जिसमें निर्बाध रूप से अथवा प्रमाण से अबाधित निरूपण किया गया है वह विवाहपण्णत्ति है।