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अंग साहित्य : एक पर्यालोचन
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वस्तु विज्ञान, जैनसिद्धान्त व जैन इतिहास की दृष्टि से यह आगम अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।
आधुनिक चिन्तक समवायांग में आये हुए गणधर गौतम की ९२ वर्ष की आयु व गणधर सुधर्मा की १०० वर्ष की आयु को पढ़कर यह तर्क प्रस्तुत करते हैं कि समवायांग की रचना सुधर्मा के मोक्ष जाने के पश्चात् हुई है। उनके तर्क के समाधान में हम यह नम्र निवेदन करना चाहेंगे कि इन गणधरों की स्थिति के सम्बन्ध में कहीं भ्रम न हो जाय अत: देवधिगणी क्षमाश्रमण ने संकलन करते समय इसमें जोड़ा है। शेष समवाय तो गणधरकृत ही है जैसा कि स्थानांग के परिचय में हमने स्पष्ट किया है।