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११. जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा में रेवती से ज्येष्ठा पर्यन्त के १९ नक्षत्रों के ९८ तारे हैं। 86वें समवाय में मेरु पर्वत भूमि से १६ हजार योजन ऊँचा है। १००वें समवाय में भगवान पार्श्व की और गणधर सुधर्मा की आयु १०० वर्ष थी।
सौ समवायों की संख्या के बाद क्रमश: १५०-२००-२५०-३००-३५०४००-४५०-५०० यावत् १०००, ११०० से २००० से १०००० से १ लाख से ८ लाख और करोड़ की संख्या वाली विभिन्न वस्तुओं का उनकी संख्या के अनुसार पृथक्-पृथक् समवायों में संकलनात्मक विवरण दिया है।
कोटि समवाय में भगवान महावीर के तीर्थकर भव से पहले छठे पोट्रिल के भव में एक करोड़ वर्ष का श्रामण्य पर्याय बताया है। उसके पश्चात् कोटाकोटि समवाय में भगवान ऋषभ से भगवान महावीर के बीच का अन्तर एक कोटाकोटि सागर बताया है। उसके बाद द्वादशांगी का गणिपिटक के नाम से परिचय दिया है। तत्पश्चात् समवसरण का वर्णन, जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र की उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी के कुलकरों का वर्णन है और वर्तमान अवसर्पिणी के कुलकर और उनकी पत्नियों का वर्णन है। तदनन्तर वर्तमान अवसर्पिणी काल के २४ तीर्थंकरों का संक्षेप में महत्त्वपूर्ण विवरण प्रस्तुत किया है। तीर्थंकरों के अतिरिक्त उनके माता-पिता, तीर्थकरों के पूर्वभवों के नाम, उनकी शिविकाएं, जन्मस्थलियाँ, देवदूष्य, दीक्षा, दीक्षा साथी, दीक्षातप, प्रथम भिक्षा प्रदान करने वाला, प्रथम भिक्षा व भिक्षा में मिला हआ पदार्थ, उनके चैत्यवक्ष व उनकी ऊँचाई, उनके प्रथम शिष्य व शिष्याएँ-इन सब बातों के संबंध में विवरण दिया गया है। चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव का परिचय भी दिया है। प्रतिवासुदेवों के नाम दिये हैं, किन्तु उन्हें महापुरुषों में परिगणित नहीं किया है।
तत्पश्चात् जंबूद्वीप के ऐरवत क्षेत्र के तीर्थकर, भरत क्षेत्र में होने वाले आगामी उत्सर्पिणी काल के कुलकर, ऐरवत के दश कुलकर एवं भरत व ऐरवत के आगामी उत्सर्पिणी काल में होने वाले २४ तीर्थकर, चक्रवर्ती, बलदेव-वासुदेव के संबंध में जानकारी दी गई है और प्रतिवासुदेव के नाम निर्दिष्ट किये हैं। सूत्र के अन्त में प्रस्तुत सूत्र की संक्षिप्त विषय सूची भी दी गई है। उपसंहार
इस प्रकार हम देखते हैं कि समवायांग में जिज्ञासु साधकों के लिए व अन्वेषणकर्ताओं के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्यों का संकलन किया गया है।