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________________ अंग साहित्य : एक पर्यालोचन १०९ ७५ लाख पूर्व और भगवान शान्ति ७५ हजार वर्ष गृहवास में रहे। छिहत्तरखें समवाय में विद्युत्कुमार आदि भवनपति देवों के ७६-७६ भवन बताये हैं। सतहत्तरबें समवाय में सम्राट भरत ७७ लाख पूर्व तक कुमारावस्था में रहे और ७७ राजाओं के साथ उन्होंने संयम-मार्ग ग्रहण किया। अठहत्तरवें समवाय में गणधर अकंपित ७८ वर्ष की आयु में सिद्ध हुए। उनासीवें समवाय में छठी नरक के मध्यभाग से छठे घनोदधि के नीचे के चरमान्त तक ७६ हजार योजन विस्तार है। अस्सीवें समवाय में त्रिपृष्ठ वासुदेव ८० लाख वर्ष तक सम्राट पद पर रहे। इक्यासीवें समवाय में भगवान कुन्थु के ८१ सौ मनःपर्यवज्ञानी थे। बयासीवें समवाय में ८२ रात्रियाँ व्यतीत होने पर श्रमण महावीर का जीव गर्भान्तर में साहरण किया गया। तिरासीवें समवाय में भगवान शीतल के ८३ गण और ३ गणधर थे। चौरासीवें समवाय में भगवान ऋषभदेव की ८४ लाख पूर्व की आयु, भगवान श्रेयांस की ८४ लाख वर्ष की आयु थी। ऋषभदेव के ८४ गण, ८४ गणधर और ८४ हजार श्रमण थे। पिचासीवें समवाय में आचारांग के ८५ उद्देशनकाल बताये हैं। छियासीवें समवाय में भगवान सुविधि के ८६ गण, ८६ गणधर बताये हैं और भगवान सुपापर्व के ८६ सौ वादी थे। सत्तासीवें समवाय में ज्ञानावरणीय और अन्तराय कर्म को छोड़कर शेष छह कर्मों की ८७ उत्तर प्रकृतियाँ बतलाई हैं। अठासीवें समवाय में प्रत्येक सूर्य और चन्द्र के ८८-८८ महाग्रह बताये हैं। नवासीवें समवाय में तृतीय आरे के ८६ पक्ष अवशेष रहने पर भगवान ऋषभ मोक्ष पधारे और भगवान शान्ति के ८६ हजार श्रमणियाँ थीं। नब्बेवें समवाय में भगवान अजित और भगवान शान्ति इन दोनों तीर्थंकरों के ६०-६० गण और ६०-६० गणधर थे। इक्यानवेवें समवाय में भगवान कुन्थू के ९१ हजार अवधिज्ञानी श्रमण थे। ९खें समवाय में गणधर इन्द्रभूति १२ वर्ष की आयु पूर्ण कर मुक्त हए। १३वं समवाय में भगवान चन्द्रप्रभ के ६३ गण और १३ गणधर थे और भगवान शान्ति के ६३ सौ चतुर्दश पूर्वधर थे। १४वें समवाय में भगवान अजित के ६४ सौ अवधिज्ञानी श्रमण थे । १५वें समवाय में भगवान श्री पार्श्व के ६५ गण और ६५ गणधर थे और भगवान कुन्थु का ६५ हजार वर्ष का आय था। ६६वें समवाय में प्रत्येक चक्रवर्ती के ९६ कोड गाँव होते हैं। ९७वं समवाय में आठ कर्मों की ९७ उत्तर प्रकृतियाँ हैं। इवें समवाय
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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