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________________ १०८ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा में क्रमशः ५४-५४ उत्तम पुरुष हुए हैं और भगवान अरिष्टनेमि ५४ रात्रि तक छद्मस्थ रहे । भगवान अनंतनाथ के ५४ गणधर थे। पचपनवें समवाय में भगवती मल्लि ५५ हजार वर्ष आयु पूर्ण कर सिद्ध हुई। छप्पनवें समवाय में भगवान विमल के ५६ गण व ५६ गणधर थे । सत्तावनवें समवाय में मल्लि भगवती के ५७०० मनःपर्यवज्ञानी थे। अठावनवें समवाय में ज्ञानावरणीय, वेदनीय, आयु, नाम और अन्तराय इन पांच कर्मों की ५८ उत्तर प्रकृतियाँ बताई हैं। उनसठवें समवाय में चन्द्रसंवत्सर की एक ऋतु ५९ अहोरात्रि की होती है। साठवें समवाय में सूर्य का ६० मुहूर्त तक एक मंडल में रहने का उल्लेख है। इकसठवें समवाय में एक युग के ६१ ऋतुमास बताये हैं । बासठवें समवाय में भगवान वासुपूज्य के ६२ गण और ६२ गणधर बताये हैं। वेसठवें समवाय में भगवान ऋषभदेव के ६३ लाख पूर्व तक राज्य सिंहासन पर रहने के पश्चात् दीक्षा लेने का वर्णन है । चौसठवें समवाय में चक्रवर्ती के बहमूल्य ६४ हारों का उल्लेख है। पेंसठवें समवाय में गणधर मौर्यपुत्र ने ६५ वर्ष तक गृहवास में रहकर दीक्षा ग्रहण की । छयासठवें समवाय में भगवान श्रेयांस के ६६ गण और ६६ गणधर थे और मतिज्ञान की उत्कृष्ट स्थिति ६६ सागर बताई है। सड़सठवें समवाय में एक युग में नक्षत्रमास की गणना से ६७ मास बताये हैं। ६८वें समवाय में धातकीखंड द्वीप में चक्रवर्ती की ६८ विजय, ६८ राजधानियाँ और उत्कृष्ट ६८ अरिहंत होते हैं तथा भगवान विमल के ६८ हजार श्रमण थे। उनहत्तरवें समवाय में मानवलोक में मेरु के अतिरिक्त ६६ वर्ष और ६७ वर्षधर पर्वत हैं। सत्तरवें समवाय में एक मास २० रात्रि व्यतीत होने पर और ७० रात्रि अवशेष रहने पर भगवान महावीर ने वर्षावास किया, इसका वर्णन है। परंपरा से वर्षावास का अर्थ संवत्सरी करते हैं। इकहत्तरवें समवाय में भगवान अजित और चक्रवर्ती सगर ७१ लाख पूर्व तक गृहवास में रहे और फिर दीक्षित हुए। बहत्तरबें समवाय में भगवान महावीर की और उनके गणधर अचलभ्राता की ७२ वर्ष की आयु बताई है और ७२ कलाओं का भी उल्लेख है। तिहत्तरवें समवाय में विजय नामक बलदेव ७३ लाख पूर्व की आयु पूर्ण करके सिद्ध हए। चौहत्तरवें समवाय में गणधर अग्निभूति ७४ वर्ष का आयु भोगकर सिद्ध हुए। पिचहत्तरवें समवाय में भगवान सुविधि के ७५ सौ केवली थे, भगवान शीतल
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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