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________________ अंग साहित्य : एक पर्यालोचन १०७ उन्तीस समवाय में २६ पापश्रुत बताये हैं और आषाढ़, भाद्रपद, कार्तिक, पोष, फाल्गुन और वैशाख इन छह महीनों के २६ दिन होते हैं यह बताया गया है। तीसवें समवाय में महामोह बन्ध के ३० कारण आदि बताये गये हैं। इकत्तीसवें समवाय में सिद्धों के ३१ गुणों का वर्णन है। बत्तीसवें समवाय में ३२ योग संग्रह और ३२ इन्द्र आदि बताये हैं। तेतीसवें समवाय में ३३ प्रकार की आशातना, चौतीसवें समवाय में ३४ अतिशय, पैंतीसवें समवाय में तीर्थंकर की वाणी के ३५ अतिशय बताये हैं। छत्तीसवें समवाय में उत्तराध्ययन के ३६ अध्ययन, सेंतीसवें समवाय में कुंथुनाथ के ३७ गण, गणधर; अड़तीसवें समवाय में भगवान पार्श्व की ३८ हजार श्रमणियाँ, उन्तालीसवें समवाय में भगवान नमिनाथ के ३९ सौ अवधिज्ञानी, चालीसवें समवाय में भगवान अरिष्टनेमि की चालीस हजार श्रमणियाँ थीं, आदि बताये हैं। इकतालीसवें समवाय में भगवात नमिनाथ की ४१ हजार श्रमणियाँ। बयालीसवें समवाय में नाम-कर्म के ४२ भेद और भगवान महावीर ४२ वर्ष से कुछ अधिक श्रमण पर्याय पालकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए। तेतालीसवें समवाय में कर्म विपाक के ४३ अध्ययन, चवालीसवें समवाय में ऋषिभाषित के ४४ अध्ययन। पैंतालीसवें समवाय में मानवक्षेत्र, सीमंतक नरकवास, उडु विमान और सिद्धशिला इन चारों को ४५ लाख योजन विस्तार वाला बताया है। छियालीसवें समवाय में ब्राह्मीलिपि के ४६ मातृकाक्षर, सेंतालीसवें समवाय में स्थविर अग्निभूति के ४७ वर्ष तक ग्रहवास में रहने का वर्णन है। अड़तालीसवें समवाय में भगवान धर्मनाथ के ४८ गण, ४५ गणधर का, उनचासवें समवाय में तेइन्द्रिय जीवों की ४६ अहोरात्र की स्थिति, पचासवें समवाय में भगवान मुनिसुव्रत की ५० हजार श्रमणियाँ थीं, आदि का वर्णन किया गया है। इक्यावनवें समवाय में ब्रह्मचर्य अध्ययन के ५१ उद्देशनकाल और बावनवें समवाय में मोहनीयकर्म के ५२ नाम बताये हैं। अपनवें समवाय में भगवान महावीर के ५३ साधुओं के एक वर्ष की दीक्षा के पश्चात् अनुत्तर विमान में जाने का वर्णन है। चौवनवें समवाय में भरत और ऐरवत क्षेत्रों
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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