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________________ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा ग्यारहवें समवाय में ग्यारह उपासक पडिमाओं के अतिरिक्त अन्य अनेक वस्तुओं का वर्णन है । बारहवें समवाय में बारह भिक्षु प्रतिमाओं के अतिरिक्त अन्य अनेक बातों का उल्लेख है । तेरहवें समवाय में नष्ट हुए प्राणायुपूर्व की तेरह वस्तु और तेरह प्रकार के चिकित्सा - स्थानों का विश्लेषण है । १०६ चौदहवें समवाय में १४ भूतग्राम, १४ पूर्व, भगवान महावीर के १४ हजार श्रमण आदि का वर्णन है । पंद्रहवें समवाय में विलुप्त हुए विद्यानुप्रवाद पूर्व की पंद्रह वस्तुओं एवं अन्य विषयों का विश्लेषण है । सोलहवें समवाय में आत्मप्रवादपूर्व की सोलह वस्तुओं का वर्णन है। सत्रहवें समवाय में सत्रह प्रकार के मरण व संयम का वर्णन है । अठारहवें समवाय में श्रमणों के अठारह स्थानों का उल्लेख है । उन्नीसवें समवाय में उन्नीस तीर्थंकरों का गृहवास में रहकर दीक्षित होना बताया है। बीसवें समवाय में प्रत्याख्यान पूर्व की २० वस्तुओं पर प्रकाश डाला है । इक्कीसवें समवाय में २१ प्रकार के दोषों का उल्लेख है । बाइसवें समवाय में दृष्टिवाद के बाईस सूत्र, छिन्नछेदनय वाले २२ सूत्र, आजीविक की दृष्टि से अच्छिन्नछेदनय वाले २२ सूत्र, त्रैराशिक की दृष्टि से २२ सूत्र, चतुर्नयक स्व-समय की दृष्टि वाले २२ सूत्र बताये गये हैं । तेईसवें समवाय में भगवान अजितनाथ आदि २३ तीर्थंकर पूर्वभव में ११ अंगधर, मांडलिक राजा थे । चौबीसवें समवाय में २४ तीर्थंकरों को देवाधिदेव कहा गया है। पच्चीसवें समवाय में पांच महाव्रतों की २५ भावनाओं आदि पर प्रकाश डाला गया है । छब्बीसवें समवाय में अभव्य जीव की मोहनीय कर्म की २६ प्रकृतियाँ सत्ता में मानी गयी हैं । सत्ताईसवें समवाय में साधु के २७ गुणों का वर्णन किया गया है। अट्ठाईसवें समवाय में मोहनीय कर्म की २८ प्रकृतियाँ और मतिज्ञान के २८ भेदों पर प्रकाश डाला है।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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