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अंग साहित्य : एक पर्यालोचन १०५ वाले जंबूद्वीप, सर्वार्थसिद्धि विमान, एक सागर की स्थिति वाले नारक, देव आदि का विवरण दिया गया है।
दुसरे समवाय में दो प्रकार के दंड-अर्थदण्ड, अनर्थदण्ड, दो प्रकार के बन्ध-रागबन्ध, द्वेषबन्ध । इस प्रकार दो-दो वस्तुओं का उल्लेख है।
तीसरे समवाय में तीन दण्ड-मन, वचन और काया, तीन शल्य, तीन गौरव, तीन प्रकार की विराधना आदि का वर्णन है।
चौथे समवाय में चार कषाय, चार ध्यान, चार विकथा, चार संज्ञा, चार बन्ध, चार पल्योपम व चार सागरोपम आयु वाले नारक और देवताओं का उल्लेख है।
पांचवें समवाय में पांच क्रिया, पाँच महाव्रत, पांच कामगुण, पाँच आस्रव, पांच संवर, पाँच समिति, पांच अस्तिकाय आदि का निरूपण है।
छठे समवाय में छह लेश्या, षट्जीवनिकाय, छह बाह्यतप, छह आभ्यंतर तप आदि का उल्लेख है। प्रस्तुत समवाय के अन्त में यह बताया है कि स्वयंभू, स्वयंभूषण, घोष, सुघोष आदि २० देवों के विमानों की उत्कृष्ट स्थिति छह सागरोपम की है। ये देव छह महीने के पश्चात् बाह्य व आभ्यंतर श्वासोच्छ्वास लेते हैं। इन्हें छह हजार वर्ष व्यतीत होने पर आहार की इच्छा जागृत होती है।
सातवें समवाय में सात प्रकार के भयस्थान, सात समुद्घात आदि का वर्णन है। भगवान महावीर का शरीर सात रनि (मूंढ हाथ) प्रमाण ऊंचा था, आदि।
आठवें समवाय में आठ मद स्थान, आठ प्रवचनमाता, आठ समय में केवली समुद्घात, भगवान पार्श्व के आठ गण और आठ गणधरों का उल्लेख है।
नवें समवाय में नव ब्रह्मचर्य गुप्ति, आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के नव अध्ययनों का नाम निर्देश किया गया है। भगवान पार्श्वनाथ के शरीर की ऊँचाई नव रत्नि (मुंढ हाथ) प्रमाण थी, आदि ।
दसवें समवाय में ज्ञान वृद्धि के लिए अनुकूल मृगशिरा, आर्द्रा, पुष्य, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाआषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपदा, मूला, आश्लेषा, हस्त और चित्रा-- इन १० नक्षत्रों का उल्लेख किया गया है, आदि ।