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________________ १०४ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा यह एक अन्वेषण का विषय है कि देवधिगणी क्षमाश्रमण ने, जो आगमों के संकलनकर्ता हैं, समवायोग और नन्दी में समवायांग का विवरण दो प्रकार से क्यों दिया है ? पूर्व पृष्ठों में हमने विभिन्न वाचनाओं के सम्बन्ध में प्रकाश डाला है। अनेक वाचनाएं होने से अनेक वाचनान्तर भी प्राप्त होते हैं। संभव है कि ये वाचनान्तर व्याख्यांश अथवा परिशिष्ट मिलाने से हए हों। विज्ञों ने ऐसी कल्पना की है कि समवायांग में द्वादशांगी का उत्तरवर्ती जो भाग है, वह उसका परिशिष्ट है। परिशिष्ट का विवरण नन्दी की सूची में नहीं दिया गया है और समवायांग की सूची विस्तृत हो गई है। समवायांग के परिशिष्ट भाग में ११ पदों का जो संक्षेप है वह किस दृष्टि से इसमें संलग्न किया गया है यह भी सुधी पाठकों के लिए चिन्तनीय प्रश्न है।' समवायांग का वर्तमान में उपलब्ध पाठ १६६७ श्लोक परिमाण है। इसमें संख्या कम से पृथ्वी, आकाश, पाताल तीनों लोकों के जीवादि समस्त तत्त्वों का द्रव्य-क्षेत्र-काल और भाव की दृष्टि से एक से लेकर कोटानुकोटि संख्या तक परिचय दिया गया है। इसमें आध्यात्मिक तत्वों, तीर्थकर, गणधर, चक्रवर्ती और वासुदेवों से सम्बन्धित वर्णन के साथ भूगोल-खगोल आदि की सामग्री संकलित की गई है। स्थानांग के समान समवायांग में भी संख्या के क्रम से वर्णन है। कहीं कहीं पर उस शैली को छोड़कर भेदाभेद का वर्णन भी किया है। समवायांग में द्रव्य की दृष्टि से जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश आदि का निरूपण किया गया है। क्षेत्र की दृष्टि से लोक, अलोक, सिद्धशिला आदि पर प्रकाश डाला गया है। काल की दृष्टि से समय, आवलिका, मुहर्त आदि से लेकर पल्योपम, सागरोपम, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी और पुद्गलपरावर्तन एवं चार गति के जीवों की स्थिति आदि पर चिंतन किया है। भाव की दृष्टि से ज्ञान, दर्शन, बीर्य आदि जीव के भावों का वर्णन है और वर्ण गंध, रस, स्पर्श आदि अजीव भावों का वर्णन भी किया गया है। . समवायांग के प्रथम समवाय में जीव, अजीव आदि तत्त्वों का प्रतिपादन करते हए, आत्मा, लोक, धर्म, अधर्म आदि को संग्रहनय की दृष्टि से एक-एक बताया गया है। उसके बाद एक लाख योजन की लंबाई चौड़ाई ३ अंगसुत्ताणि, भा० १, भूमिका, पृ० ४०-४४ ।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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