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अंग साहित्य : एक पर्यालोचन १०३ क्षमाश्रमण की वाचना का है ? यदि है तो समवायांग के दोनों विवरणों में अन्तर का कारण क्या है ?
उत्तर में निवेदन है कि नन्दी में समवायांग का जो विवरण है उसमें अन्तिम वर्णन द्वादशांगी का है। किन्तु वर्तमान में जो समवायांग है उसमें द्वादशांगी से आगे अनेक विषय प्रतिपादित किये गये हैं अत: नन्दीगत समवायांग के विवरण से यह आकार की दृष्टि से भिन्न है।
द्वितीय प्रश्न का निश्चित रूप से उत्तर देना कठिन है; तथापि यह कहा जा सकता है कि आगमों की वाचनाएँ अनेक हई हैं । आचार्य अभयदेव ने समवायांग की बृहद् वाचना का उल्लेख अपनी वृत्ति में किया है। इससे यह अनुमान सहज ही किया सकता है कि नन्दी में जो समवाय का परिचय दिया है वह लघु वाचना की दृष्टि से दिया गया हो।
समवायांग के परिवधित आकार के सम्बन्ध में विज्ञों ने दो अनुमान किये हैं। वे अनुमान कहाँ तक सत्य हैं यह निश्चित रुप से नहीं कहा जा सकता।
(१) वर्तमान में उपलब्ध समवायाङ्ग देवधिगणी की वाचना से पृथक् है।
(२) या द्वादशांगी के बाद के अंश देवधिगणी के संकलन के पश्चात इसमें मिलाये गये हैं।
यदि प्रस्तुत समवायांग पृथक् वाचना का होता तो इस सम्बन्ध में कुछ न कुछ अनुश्रुति अवश्य ही मिलनी चाहिए थी। जैसे-ज्योतिष्करंड ग्रन्थ माथुरी वाचना का है पर समवायांग के सम्बन्ध में ऐसी कोई अनुश्रुति नहीं है। अतः प्रथम अनुमान ठीक नहीं है। दूसरे अनुमान के सम्बन्ध में निवेदन है कि भगवतीसूत्र में कुलकर और तीर्थंकर आदि के पूर्ण विवरण के लिए समवायांग के अन्तिम भाग को देखने का सूचन किया गया है।' इसी तरह स्थानांगसूत्र में भी बलदेव-वासुदेव के पूर्ण विवरण के लिए समवायांग के अन्तिम भाग को अवलोकनार्थ सूचन किया गया है। इससे स्पष्ट है कि समवायांग में जो परिशिष्ट भाग हैं वे देवधिगणी क्षमाश्रमण के समय में ही जोड़े गये हैं।
१ भगवतीसूत्र, श० ५, उ०५। २ स्थानांग, ६।१६-२० ।