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जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
समवायांग में जो समवाय की विषय-सूची दी गई है वह इस
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प्रकार है
(१) जीव, अजीव, लोक, अलोक, स्व-समय और पर समय का
समवतार ।
१.
२
(२) एक से सौ संख्या तक का विकास । (३) द्वादशांगी गणिपिटक का वर्णन । (४) आहार (५) उच्छ्वास (८) उपपात (६) च्यवन ( १२ ) विधान (१३) उपयोग (१६) कषाय ( १७ ) योनि ( २० ) गणधर (२१) चक्रवर्ती
( ६ ) लेश्या (७) आवास (१०) अवगाह (११) वेदना (१४) योग (१५) इन्द्रिय (१८) कुलकर (१९) तीर्थंकर (२२) बलदेव - वासुदेव ।
दोनों विषय-सूचियों का अध्ययन करने से यह स्पष्ट परिज्ञात होता है कि नन्दी की सूची संक्षिप्त है और समवायांग की विस्तृत है। संक्षिप्त और विस्तृत सूची की तरह आगम भी संक्षिप्त और विस्तृत हो जाता है । नन्दी और समवायांग में सौ तक एकोत्तरिका वृद्धि होती है, ऐसा स्पष्ट निर्देश है । किन्तु उनमें अनेकोत्तरिका वृद्धि का उल्लेख नहीं हुआ है । नंदी चूर्ण, नंदी हारिभद्रीया वृत्ति, नंदी मलयगिरि वृत्ति, इन तीनों में भी अनेकोतरिका वृद्धि का कोई निर्देश नहीं है। समवायांग की वृत्ति में आचार्य अभयदेव ने अनेकोत्तरिका वृद्धि का उल्लेख किया है । उनके अभिमतानुसार सौ तक एकोत्तरिका वृद्धि होती है और उसके बाद अनेकोत्तरिका वृद्धि होती है । ऐसा ज्ञात होता है कि समवायांग के विवरण के आधार पर वृत्तिकार ने यह उल्लेख नहीं किया है किन्तु जो समवायांग में पाठ मिलता है उसके आधार से उन्होंने यह वर्णन किया है ।
प्रथम प्रश्न है कि नन्दीसूत्र में जो समवायांग का परिचय दिया गया है क्या उस परिचय से वर्तमान में उपलब्ध समवायांग भिन्न है ?
द्वितीय प्रश्न है कि जो वर्तमान में समवायांग क्या वह देवगणी
समवायांग प्रकीर्णक समवाय सूत्र ६२ ।
च शब्दस्य चान्यत्र सम्बन्धादेकोत्तरिका अनेकोत्तरिका च तत्र शतं यावदेकोत्तरिका परतोऽनेकोत्तरिकेति । - समवायांग वृत्ति, पत्र १०५