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________________ नाम-बोध ४. समवायांग समवायांग का द्वादशांगी में चतुर्थ स्थान है । समवायांग वृत्ति में लिखा है कि इसमें जीव, अजीव आदि पदार्थों का परिच्छेद या समवतार है अंतः प्रस्तुत आगम का नाम समवाय या समवाओ है।' दिगंबर ग्रन्थ गोम्मटसार के अभिमतानुसार इसमें जीव आदि पदार्थों का सादृश्य - सामान्य से निर्णय लिया गया है अतः इसका नाम समवाय है। विषय-वस्तु नंदीसूत्र में समवायांग की विषय-सूची इस प्रकार प्राप्त होती है :(१) जीव, अजीव, लोक, अलोक एवं स्व-समय पर समय का समवतार । (२) एक से लेकर सौ तक की संख्या का विकास । (३) द्वादशांग गणिपिटक का परिचय | 3 १ समिति सम्यक् अवेत्याधिक्येन अयनमयः परिच्छेदो जीवाजीवादि विविधपदार्थसार्थस्य यस्मिन्नसौ समवायः, समवयन्ति वा समवसरन्ति सम्मिलन्ति नानाविधा आत्मादयो भावा अभिधेयतया यस्मिन्नसौ समवाय इति । -- समवायांग वृत्ति, पत्र १ २ "संसंग्रहेण सादृश्यसामान्येन अवेयंते ज्ञायन्ते जीवादिपदार्था द्रव्यकालभावनामाश्रित्य अस्मिन्निति समवायांगम् । - गोम्मटसार जीवकांड, जीव प्रबोधिनी टीका, गा० ३५६ ३ से किं तं समवाए ? समवाए णं जीवा समासिज्जंति, अजीवा समासिज्जति, जीवाजीवा समासिज्जति । ससमए समासिज्जद, परसमए समासिज्जइ, ससमयपरसमए समासिज्जइ । लोए समासिज्जर, अलोए समासिज्जर, लोयालोए समासिज्जइ । समवाए णं एमाइयाणं एगुत्तारेयाणं ठाणसयं निवड्ढियाणं भावाणं परूवणा आघविज्जइ । दुवालसविहस्स य गणिपिडगस्स पल्लवग्गे समासिज्जइ । नन्दी, सूत्र, ८३
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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