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अंग साहित्य : एक पर्यालोचन
चतुर्थ स्थान में अनेक चौमंगियों का उल्लेख है । आचार्य श्रावक आदि का चित्रण उपमा से बताया है। जैसे (१) खजूर - बाहर से मृदु अंदर से कठोर, (२) बादाम - बाहर से कठोर अन्दर से कोमल, (३) सुपारी - अन्दर और बाहर दोनों ओर से कठोर (४) द्राक्षा- बाहर और अन्दर दोनों तरफ मृदु । चार प्रकार के पुरुष हैं :- (१) रूपवान किन्तु गुणहीन (२) गुणवान किन्तु रूपहीन (३) रूप और गुण दोनों से हीन (४) रूप और गुण दोनों से संपन्न । चार प्रकार के कुंभ है - (१) अमृत का कुंभ मुख पर विष (२) विषकुंभ मुख पर अमृत (३) विषकुंभ और विष का ढक्कन ( ४ ) अमृतकुंभ और अमृत का ढक्कन ।
पंचम स्थान में पाँच बातों पर प्रकाश डाला है। जैसे जीव के पाँचप्रकार - एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय विषय पाँच - शब्द, रूप, रस, गंध, स्पर्श । इन्द्रियाँ पाँच - श्रोत्र, चक्षु, घ्राण, रसन, स्पर्श । अजीव के पाँच प्रकार - धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल और काल ।
छठे स्थान में जीवादि पदार्थों की छः संख्या का वर्णन है। जैसेपृथ्वी, अप्, तेजस्, वायु, वनस्पति और त्रस । लेश्या छह-कृष्ण, नील, कापोत, तेजो, पद्म और शुक्ल ।
सातवें स्थान में सात प्रकारों का वर्णन है। जीव के सात प्रकार -- सूक्ष्म एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय और संज्ञी पंचेन्द्रिय । भय सात - इहलोक भय, परलोक भय, आदान भय, आकस्मिक भय, अपयश भय, आजीविका भय, मरण भय, आदि ।
आठवें स्थान में आत्मा के आठ प्रकार - द्रव्य, कषाय, योग, उपयोग, ज्ञान, दर्शन, चारित्र और वीर्य आठ मद जाति, कुल, बल, रूप, लाभ, तप श्रुत, ऐश्वर्यं । अष्ट समिति - इर्यासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदाननिक्षेपणासमिति, परिस्थापनासमिति, मनसमिति, वचनसमिति, कायसमिति, आदि ।
नवें स्थान में नो की संख्या का वर्णन है। जैसे—नवतत्त्व, चक्रवर्ती की नवनिधियों, पुण्य के नव प्रकार, आदि ।
दसवें स्थान में दश की संख्या का वर्णन है। जैसे—धर्म के दश प्रकारक्षमा, निर्लोभता, आर्जव, मार्दव, लाघव, सत्य, संयम, तप, त्याग, ब्रह्मचर्यं । दश प्रकार के सुख- शरीर की स्वस्थता, दीर्घायु, आढद्यता, शब्द एवं रूप