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अंग साहित्य : एक पर्यालोचन ६७
विषय-वस्तु
समवायांग व नन्दीसूत्र में ठाणांग का परिचय देते हुए लिखा है कि इसमें स्वसमय, परसमय, स्व-पर उभय समय, जीव-अजीव जीवाजीव, लोक, अलोक की स्थापना की गई है। पदार्थ का द्रव्य क्षेत्र काल और पर्याय की दृष्टि से चिन्तन किया गया है। एक स्थान, दो स्थान, यावत् दश स्थान से दशविध वक्तव्यता की स्थापना की गई है और धर्मास्तिकाय, Raftaar आदि द्रव्यों की प्ररूपणा भी की गई है। इसमें एक श्रुतस्कन्ध, दश अध्ययन, इक्कीस उद्देशनकाल, इक्कीस समुद्देशनकाल, ५२ हजार पद संख्यात अक्षर, अनंत गम, अनंत पर्याय तथा वर्णन की दृष्टि से असंख्यात त्रस और अनंत स्थावर का निरूपण है। वर्तमान में प्रस्तुत सूत्र का पाठ ३७७० श्लोक परिमाण है ।
हम पहले ही बता चुके हैं कि संख्या क्रम की दृष्टि से द्रव्य, गुण, क्रिया आदि का प्रस्तुत आगम में निरूपण है। प्रथम प्रकरण में एक दूसरे में दो, तीसरे में तीन इस प्रकार अनुक्रम से अंतिम प्रकरण में दशविध वस्तुओं का वर्णन है और उसी संख्या के आधार पर प्रकरणों का नामनिर्देश किया गया है। जिन प्रकरणों में सामग्री का प्राचुर्य हो गया उस प्रकरण के उपविभाग किये गये हैं । द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ इन तीन प्रकरणों के चारचार उपविभाग किये गये हैं। पाँचवें प्रकरण के तीन उपविभाग किये गये हैं। शेष स्थानों के उपविभाग नहीं किये गये हैं ।
क्या यह आगम अर्वाचीन है ?
प्रस्तुत आगम में श्रमण भगवान महावीर के पश्चात् दूसरी से छठी शताब्दी तक की अनेक घटनाएं आई हैं। जिससे विद्वानों को यह शंका हो गई है कि प्रस्तुत आगम अर्वाचीन है। वे शंकाएँ इस प्रकार हैं
(१) नवें स्थान में गोदासगण, उत्तरबलिस्सहगण, उद्देहगण, चारणगण, उडुवातितगण, विस्सवातितगण, कामड्ढितगण, माणवगण और कोडितगण -- इन गणों की उत्पत्ति का उल्लेख कल्पसूत्र में हुआ है। ये सभी गण महावीर निर्वाण के पश्चात् २०० से ५०० वर्ष तक की अवधि में उत्पन्न हुए थे ।
(२) सातवें स्थान में जमालि, तिष्यगुप्त, आषाढ, अश्वमित्र, गंग, रोहगुप्त, और गोष्ठामाहिल इन सात निह्नवों का वर्णन है। इनमें