________________
अंग साहित्य : एक पर्यालोचन ६५ उपसंहार
इस प्रकार हम देखते हैं कि सूत्रकृतांग सूत्र में दार्शनिक चर्चाएँ अत्यधिक महत्वपूर्ण हुई हैं, साथ ही आध्यात्मिक सिद्धान्तों को जीवन में ढालने एवं अन्य मतों का परित्याग कर शुद्ध श्रमणाचार का पालन करने की महत्त्वपूर्ण प्रेरणा दी गई है। साधना के महामार्ग पर बढ़ते समय अनेक विघ्न, उपसर्ग, अनुकूल या प्रतिकूल परीषह उपस्थित हों तब भी साधक अपने मार्ग से विचलित न हो-यह इस आगम से ध्वनित होता है।
उस युग की जो दार्शनिक दृष्टियाँ थीं उनकी जानकारी भी प्रस्तुत आगम से होती है । अतः ऐतिहासिक, दार्शनिक व धार्मिक सभी दृष्टियों से यह आगम अपनी अनूठी विशेषता रखता है।