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________________ अंग साहित्य : एक पर्यालोचन ८६ जिन आहार पुद्गलों को शरीर में प्रक्षिप्त किया जाता है वह प्रक्षेप आहार है। इसे किन्हीं ग्रन्थों में कवल आहार भी कहा है। बनस्पतियाँ-पृथ्वीयोनिक, वृक्षयोनिक, ऐसे मुख्य दो प्रकार की हैं। और कितनी वनस्पतियाँ उदकयोनिक भी है । श्रमणों को संयमपूर्वक आहार ग्रहण करने के लिए प्रेरणा दी गई है। चतुर्थ अध्ययन का नाम प्रत्याख्यानक्रिया है। प्रत्याख्यान का अर्थ है-मूलगुण व उत्तरगुणों के आचरण में बाधक प्रवृत्तियों का त्याग करना। प्रस्तुत अध्ययन में प्रत्याख्यानक्रिया पापरहित होने से आत्मशुद्धि में महान सहायक है । जो आत्मा षटकाय के जीवों के वध करने का परित्याग नहीं करता है वह उनके साथ मित्रवत् व्यवहार नहीं कर सकता। उसकी भावना सर्वदा सावद्यानुष्ठान रूप रहती है। जैसे एक हत्यारे के अन्तर्मानस में यह विचार उबुद्ध हुआ कि मुझे अमुक व्यक्ति की हत्या करनी है, पर अभी कुछ समय तक मैं आराम करूं। जब समय मिलेगा तब उसका काम तमाम कर दूंगा। उस हत्यारे के मन में सोते-बैठते, चलते-फिरते हत्या की भावना ही रहती है व प्रतिक्षण कर्मबंधन ही करता है। उसी प्रकार जिसने प्रत्याख्यान नहीं किया है, वह षट्जीवनिकाय के प्रति हिंसक भावना रखने के कारण निरन्तर कर्मबन्धन करता रहता है । अतः साधक को मर्यादित जीवन बनाने के लिए प्रत्याख्यान रूप क्रिया की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है। पाँचवें अध्ययन के आचारश्रुत व अनगारश्रुत ये दो नाम उपलब्ध होते हैं। नियुक्ति में भी ये दो नाम मिलते हैं। आचार का सम्यक् पालन करने के लिए साधक को बहुश्रुत होना आवश्यक है। बिना बहुश्रुत हुए साधक आचार और अनाचार का पृथक्करण नहीं कर सकता। लोकअलोक, जीव-अजीव, धर्म-अधर्म, बन्ध-मोक्ष आदि नहीं है यह मान्यता अनाचरणीय है। अन्त में श्रमण को अमुक-अमुक प्रकार की भाषा न बोलने का भी सूचन है। छठा अध्ययन आर्द्रककुमार का है। आईककुमार आर्द्रकपुर के राजकुमार थे जो अनार्य देश में था। एक बार उनके पिता ने राजा श्रेणिक के १ डा. ज्योतिप्रसाद जैन ने आर्द्रककुमार को ईरान के ऐतिहासिक सम्राट कुरुष (ई० पू०५५८-५३०) का पुत्र माना है-देखिए, भारतीय इतिहास : एक दृष्टि, पृ०६७-६८, भारतीय ज्ञानपीठ काशी, सन् १९६१ ।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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