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________________ ८६ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा द्वितीय पद्य का आदि वचन शृङ्खला के समान जुड़े हुए हैं अत: इसका नाम संकलिका अथवा शृङ्खला है। इस अध्ययन में यमक अलंकार का प्रयोग हुआ है अत: इसका नाम 'यमकीय' भी है-ऐसा वृत्तिकार का कथन है। प्रस्तुत अध्ययन में विवेक की दुर्लभता, संयम के श्रेष्ठ परिणाम, संयम मार्ग की जीवन पद्धति आदि का निरूपण है। षोडशवें अध्ययन का नाम गाथा है। गाथा का अर्थ नियुक्तिकार ने किया है--जिसका मधुरता से गान किया जा सके, वह गाथा है। जिसमें अर्थ की बहुलता हो, बह गाथा है या छन्द द्वारा जिसकी योजना की गई हो वह गाथा है। इसमें साधु के माहण, श्रमण, भिक्खू और निर्ग्रन्थ ये चार नाम देकर उसकी व्याख्या की गई है। द्वितीय श्रुतस्कन्ध द्वितीय श्रुतस्कन्ध के सात अध्ययन हैं। भद्रबाहु ने नियुक्ति में इन सात अध्ययनों को महाध्ययन कहा है । वृत्तिकार की दृष्टि से प्रथम श्रुतस्कन्ध में जो बातें संक्षेप में कही गई हैं, उन्हीं बातों का विस्तार इन अध्ययनों में होने से इन्हें महा अध्ययन कहा गया है। इसका प्रथम अध्ययन पुंडरीक है । पुंडरीक का अर्थ है सौ पंखुड़ियों वाला श्रेष्ठ श्वेत कमल । जैसे एक विशाल पुष्करणी है उसमें चारों ओर सुन्दर कमल के फूल खिल रहे हैं। उन कमलों के मध्य में एक पुंडरीक कमल खिल रहा है। वहाँ पर पूर्व दिशा से एक व्यक्ति आया। उसने पुण्डरीक को देखकर कहा-मैं कुशल, पंडित, मेधावी और मार्गविद हैं अतः प्रस्तुत उत्तम कमल को तोड़कर प्राप्त कर सकंगा। वह पुष्करणी में उतरा और कीचड़ में फंस गया। न वह पुनः किनारे पर आ सका और न वह पुण्डरीक को पा सका । इसी प्रकार पश्चिम, उत्तर व दक्षिण दिशा से तीन व्यक्ति और आए तथा पुण्डरीक को प्राप्त करने की इच्छा से कीचड़ में फंस गये। उस समय एक निस्पृह संयमी श्रमण वहाँ पर आया। वह चारों व्यक्तियों को कीचड़ में फंसा हुआ देखकर चिन्तन करने लगा-ये लोग अकुशल और अमेधावी है। कहीं इस प्रकार कमल प्राप्त किया जा सकता है ? वह श्रमण पुष्करणी के किनारे खड़े रहकर कहने लगा 'हे कमल ! मेरे पास चला आ' और वह कमल उसके हाथ में आ गया। प्रस्तुत रूपक का सार यह है, 'संसार पुष्करणी के समान है। उसमें कर्मरूपी पानी और विषय-भोग रूपी कीचड़ भरा हुआ है। अनेक जनपद
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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