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________________ अंग साहित्य : एक पर्यालोचन ८३ नरकों का वर्णन है। यह वर्णन प्रस्तुत अध्ययन के वर्णन से बहुत कुछ मिलता-जुलता है। अभिधर्मकोष में आठ नरकों के नाम प्राप्त होते हैं।' वर्णन के साथ ही शब्दावली भी बहुत कुछ समान है। वीरस्तुति नामक षष्ठ अध्ययन में श्रमण भगवान महावीर की विविध उपमाएँ देकर स्तुति की गई है। यह महावीर की सबसे प्राचीन स्तुति है। इसमें भगवान महावीर के गुणों का हृदयग्राही वर्णन है। इसमें महावीर को हाथियों में ऐरावण, मृगों में सिंह, नदियों में गङ्गा और पक्षियों में गरुड़ की उपमा देते हुए लोक में सर्वोत्तम बताया गया है। सप्तम अध्ययन कुशील विषयक है। इस अध्ययन में ३० गाथाएँ हैं। कुशील का अर्थ अनुपयुक्त व अनुचित व्यवहार वाला है। जो साधक असंयमी हैं, जिनका आचार विशुद्ध नहीं है उनका परिचय प्रस्तुत अध्ययन में दिया गया है। चूर्णिकार ने गौवतिक-सम्प्रदाय, रण्डदेवता-सम्प्रदाय (चण्डीदेवता-सम्प्रदाय), वारिभद्रक-सम्प्रदाय, अग्निहोमवादी व जल शौचवादी सम्प्रदायों को गिनाया है। वृत्तिकार ने भी इनकी मान्यताओं पर प्रकाश डाला है। प्रस्तुत अध्ययन में तीन प्रकार के कूशीलों की भी चर्चा की गई है-(१) अनाहार संपज्जण-आहार में मधुरता पैदा करने वाले नमक आदि के त्याग से मोक्ष मानने वाले, (२) सीओदग सेवण-शीतल जल के सेवन से मोक्ष मानने वाले, (३) हुएण-होम से मोक्ष मानने वाले। शास्त्रकार ने अन्य दृष्टान्त देकर इन मतों का खण्डन किया है और बताया है कि राग, द्वेष, काम, क्रोध और लोभ का अन्त करने वाला ही मोक्ष को प्राप्त करता है। अष्टम अध्ययन वीर्य से सम्बन्धित है। नियुक्तिकार ने वीर्य का अर्थ सामर्थ्य, पराक्रम, बल व शक्ति किया है। वीर्य अनेक प्रकार का कहा है। सूत्रकार ने अकर्मवीर्य-पंडितवीर्य, और कर्मवीर्य-बालवीर्य ये दो प्रकार बताये हैं। यहाँ पर कर्म शब्द प्रमाद एवं अशील का सूचक है और अकर्म शब्द अप्रमाद और संयम का निर्देशक है। जो लोग प्राणियों के विनाश के जातक में ८ नरक बताये हैं-(१) संजीव, (२) कालसुत्त, (३) संघात, (४) जालरोरुव, (५) धूम, (६) रोरुव, (७) तपन, (८) प्रतापन अवीचि (५३०)। मज्झिमनिकाय में नारकों के विविध कष्टों का वर्णन है। -देखिए-बालपंडित सुसंत १२६
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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