________________
२. सूत्रकृतांग सूत्र
नाम-बोध
प्रस्तुत आगम द्वादशांगी का दूसरा अंग है। समवायांग, नन्दी और अनुयोगद्वार में इस आगम का नाम 'सूयगडी' उपलब्ध होता है ।"
नियुक्तिकार भद्रबाहु स्वामी ने तीन गुणनिष्पन्न नाम प्रस्तुत आगम के बताये हैं । "
१- सूतगड - सूतकृत
२- सुत्तकड
सूत्रकृत
३- सूयगड -- सूचाकृत
瀟
प्रस्तुत आगम श्रमण भगवान महावीर से सूत - उत्पन्न है और यह
ग्रन्थ रूप में गणधर द्वारा कृत है इसलिए इसका नाम सूतकृत है ।
सूत्र के द्वारा इसमें तत्त्वबोध किया जाता है, एतदर्थ इसका नाम सूत्रकृत है।
इसमें 'स्व' और 'पर' समय की सूचना की गई है इसलिए इसका नाम सूचाकृत है ।
जितने भी अंग हैं उनके अर्थ रूप के प्ररूपक भगवान महावीर हैं और सूत्र रूप के रचयिता गणधर हैं। फिर यह जिज्ञासा सहज ही उद्भूत हो सकती है कि प्रस्तुत आगम को ही सूत्रकृत क्यों कहा है ? इसी तरह द्वितीय नाम भी सभी अंगों के लिए व्यवहृत हो सकता है। उत्तर है-प्रस्तुत आगम के नाम का अर्थ की दृष्टि से तीसरा नाम आधाररूप है । क्योंकि प्रस्तुत
१ (क) समवायांग प्रकीर्णक समवाय ८८
(ख) नन्दी सूत्र ८०
(ग) अनुयोगद्वार सूत्र ५०
२. सूतगढं सुत्तकडं सूयगढं चेव गोण्णाई
-सूत्रकृतांग निर्युति गाथा २