________________
tex
जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
शीत एवं दंशमशकजन्य परीषहों से बचने के लिए उन्होंने उसका कभी उपयोग नहीं किया ।
द्वितीय और तृतीय उद्देशक में यह बताया है कि भगवान महावीर को किन-किन विकट संकटपूर्ण क्षेत्रों में विहार कर कैसे-कैसे स्थानों पर रहना पड़ा और वहां कितने तथा कैसे-कैसे असह्य एवं घोर परीषह उन्हें सहन करने पड़े ।
चतुर्थ उद्देशक में भगवान महावीर की उग्र तपश्चर्या का वर्णन करते हुए यह बताया है कि वे भिक्षा में किस प्रकार का रुक्ष और नीरस भोजन ग्रहण करते थे । भगवान ने किस प्रकार निराहार और निर्जल रहकर साधना की, इसका शब्द-चित्र भी उपस्थित किया गया है। अनार्य देशों में परिभ्रमण करते समय किस प्रकार के भीषण उपसर्ग सहन करने पड़े, इसका भी हृदयस्पर्शी चित्र अंकित किया गया है। पर भगवान कभी भी अपने पथ से विचलित नहीं हुए। वे सदा साधना के पथ पर बढ़ते ही रहे । इस प्रकार हम देखते हैं कि आचारांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध में नौ अध्ययन हैं और उनके ५१ उद्देशक हैं। महापरिज्ञा और उसके सात उद्देशक विलुप्त हो जाने से वर्तमान में प्रथम श्रुतस्कन्ध के आठ अध्ययन और ४४ उद्देशक हैं। द्वितीय श्रुतस्कन्ध
आचारांग का द्वितीय श्रुतस्कन्ध पाँच चूलिकाओं में विभक्त है । इनमें से चार चूलिकाएं तो आचारांग में हैं किन्तु पाँचवीं चूलिका अत्यधिक विस्तृत होने से आचारांग से पृथक् कर दी गई, जो वर्तमान में निशीथसूत्र के नाम से उपलब्ध है। नंदीसूत्र में निशीथ का नाम मिलता है किन्तु स्थानांग, समवायांग एवं आचारांग निर्मुक्ति में इसका नाम आचारकल्प या आचारप्रकल्प मिलता है ।
आचारकल्प की चार चूलिकाओं में से प्रथम चुलिका के सात अध्ययन और पच्चीस उद्देशक हैं। प्रथम पिंडेषणा नामक अध्ययन में निर्दोष आहार पानी किस प्रकार प्राप्त करना चाहिए, भिक्षा के समय श्रमण को किस प्रकार चलना, बोलना व आहार प्राप्त करना चाहिए आदि का वर्णन है । पिण्ड का अर्थ आहार है ।
प्रस्तुत अध्ययन में अपवाद मार्ग का भी उल्लेख हुआ है। जैसे—दुर्भिक्ष की स्थिति है, मुनि किसी गृहस्थ के घर भिक्षा के लिए गया । गृहपति ने