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किष्किन्ध्या-लंका २०० मील का अन्तर था। वराहमिहिर के अनुसार उज्जयिनी और लंका एका ही अक्षांश पर स्थित थीं, पुराणों के अनुसार भी लंका तथा सिंहल दो भिन्न-भिन्न द्वीप। सादृश्य का प्रथम 'आरोप', संभवतः, धर्मकीत्ति में मिलता है; और आज तो 'सेतुबन्ध' अदिः कितने ही 'तीर्थों' ने इतिहास की स्पष्टता एवं परम्परा को सर्वथा धूमिल कर दिया है। ल(न)वपुर-लवकोट, लोभपुर, लौहोर ( राजत०), लाहौर । ला(ना)ट (देश)-दक्षिण गुजरात ( माही-ताप्ती का दोआब )। ली(नी) लांजल (न)-जुद्ध तथा सुजाता की तपोभूमि-पुनर्भवभूमि-निरंजना(रा), फल्गु । ( अश्वघोष ) लुम्बि(झि)नी-नेपाल की तराई में, 'रुम्मेनदेई'---भगवान् बुद्ध का जन्म-तपोवन, जिसका स्थान बौद्धों के ८ चैत्यों में प्रथम है। लोध्रकानन-कुमाऊँ में, गर्ग ऋषि का आश्रम, 'लोधमूना' । ( रधु०) लौहित्य-ब्रह्मपुत्र नदी, जहाँ परशुराम ने मातृहत्या के पाप को धोया था; कालिदास के दिनों में प्राग्ज्योतिष की सीमा। वंक्ष-वक्षु, इक्षु, चक्षु-औक्सस् अर्थात् आमू दरिया । वंश-वत्स (देश)। वटपद्रपुर-गायकवाड़ की राजधानी, बड़ोदा। वत्स-इलाहाबाद के पश्चिम में उदयन का राज्य; राज कौशाम्बी। वन-ब्रजमण्डल के १२ वनों-वृन्दा, मधु, कुमुद आदि का सर्वनाम; वामनपुराण में
अनुसार कुरुक्षेत्र के ७ वनों का। वरदा-मध्यभारत में 'वर्षा' नदी। बराहक्षेत्र-काश्मीर में, जेहलम के तट पर, 'बारामूला'। वर्धमान (कोटि) काशी तथा प्रयाग का मध्यवर्ती, अस्थिक (ग्राम), जहाँ महावीर ने
'कैवल्य' 'सिद्धि पाकर प्रथम 'वर्षा' बिताई थी। वर्ष-वराह पुराण में वर्णित-नील, निषध, श्वेत, हेम, हिमवत्, शृङ्गवत्-६ पर्वत । वलभि-वलभि-युग में सुराष्ट्र की राजधानी । वशिष्ठाश्रम-अवध में अर्बुद ( आबू) पर्वत पर, तथैव कामरूप में, वशिष्ठ का तपोवन । वसुधारा-अलकनन्दा। वाकाटक-हैदराबाद-दक्खिन में, कैलकिल यवनों का-तथा अनन्तर ( वाकाटक ) विन्ध्य
शक्ति द्वारा संस्थापित गुप्तकालीन-राज्य । वातापिपुर-बीजापुर में, 'बादामी'-जो छठी सदी में महाराष्ट्र-राज पुलकेशी की राजधानी थी । वामनस्थली-जूनागढ़ के निकट, बनथाली। राजस्थान की 'वनस्थली' ( ? )। वाराणसी-'वरुणा' तथा 'अस्सी' के संगम पर अवस्थित होने से, काशी का यथार्थ नाम । वाल्मीकि-आश्रम-कानपुर से १४ मील दूर, बिठूर (उत्पलारण्य)-जहाँ भगवान राम के
यज्ञिय अश्व को लव-कुश ने बाँध लिया था। वाशिष्ठी-गोमती नदी; चर्मण्वती (?)। वाहीक-व्यास तथा सतलज का दोआब ( केकय के उत्तर में ), पंजाब। वालीक-श()कद्वीप, बैक्ट्रिया की राजधानी, बलख । चन्द्रगुप्त द्वितीय ने, शकाधिपति को बलख तक खदेड़ कर, मानो वराह-अवतार द्वारा पृथ्वी का उद्धार करते हुए ध्रुवस्वामिनी तथा गुप्रसाम्राज्य की 'लाज रक्खी' थी। ( मेहरौली अभिलेख, मुद्राराक्षस, रघुवंश) विक्रमपुर-ढाका में, 'बल्लालपुरी'-आदिशर की तथा सेन राजाओं की राजधानी ।
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