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[७८५] सार-उड़ीसा में वैतरणी नदी पर, ययातिपुर-जो छठी-दसवीं सदियों में केसरी राजवंश
राजधानी था। --'जावा' दीप, जिसे गुजरात के एक राजकुमार ने सातवीं सदी के आरम्भ में बसाया
( ब्रह्माण्ड०) ननगर, जूर्णनगर-गुजरात का जूनागढ़ । वंक्षु नदी का क्षेत्र, अश्मक 'आक्सियाना', जहाँ 4वीं सदी ई० में) हूणों की एक उपजाति 'ज्वाँ-ज्वाँ' ( यवनी) रहा करती थी। (रघु०) कवेणी-बंगाल की 'विप्रलम्धा' मुक्तवेणी के विपरीत, प्रयाग की 'सम्भोगिनी' त्रिवेणी। धेय-बहावलपुर का जोहियावाड़, जो महाभारत तथा गुप्तयुग में यौधेयों का सीमान्त था। बाइबिल में इन्हें 'हुद' तथा १६वीं सदी के यात्रावृत्तों में 'आयुध' कहा गया है। नहीप-सिंहल। नपुर-विलासपुर के १५ मील उत्तर, (मयूर ध्वज हैहयों की ) दक्षिणकोसल की राजधानी । धस्था-अवध की राप्ती (रेवती) नदी। न्तिपुर-गोमती-तट पर, रिन्ताम्बूर' । गोमती (चर्मग्वती) के तट पर रन्तिदेव का दैनिक गोसहस्र-साव' ( यज्ञ) होता था।
-अवस्ता की 'रन्हा' नदी, अथवा यूनानियों की 'जक्साटिस'---जो शकों-नागों-हूणों का दूल-आवास थी।
तल-कैस्पियन सागर के उत्तर की ओर, हूण-राज्य, पश्चिमी तात्र । हूणों की विभिन्न जातियों के आधार पर रसातल के सात लोक थे--अतल, नितल, वितल, तलातल, महातल, : तल, पाताल (?)।
जारह-मगध की प्राचीन राजधानी, जिसे (गिरिवज्र के उत्तर में) बिम्बिसार ने बसाया था। राजपुरी-(काश्मीर में) पुंछ के द० पू०, 'राजौरी' । राढ़-पंचगौड़ का पश्चिमी प्रदेश । रामगिरि-कालिदास के यक्ष की तथा रामायण के शम्बूक की तपोभूमि-मध्यभारत में, 'रामटेक' पर्वतशृङ्खला। रामणीयक-आमीनिया। ( महा०) रामदासपुर-अमृतसर-गुरु नानक का, रामदास द्वारा प्रस्तुत, 'शान्तिनिकेतन' । रामहृद-(कुरुक्षेत्र में ) 'ब्रह्मसर' तीर्थ, जो राजा कुरु की तपोभूमि, पुरूरवा-उर्वशी की संकेत. भूमि तथा वृत्र की मृत्युभूमि था। यही 'प्रतिशा'-भंग कर कृष्ण ने भीष्म के विरुद्ध 'सुदर्शन चक्र' उठाया था-चक्रतीर्थ ।। रामेश्वरम्-सिहल तथा भारत के मध्य, सेतुबन्ध । रावणहद-कैलास के निकट, 'अनवतप्त' सरोवर, रावण की तपोभूमि । रेवती-अचिरावती ( राप्ती)। रेवा नर्मदारैवत(तक)-जैन सन्त नेमिनाथ की जन्मभूमि, गुजरात का गिरिनार पर्वत । रोह (हि)-अफगानिस्तान । रोहितक-बंगाल के शाहाबाद जिले में विन्ध्य की एक शाखा, रोहिताश्म(श्व)। पंजाब के 'रोहतक' का संस्थापक रोहिताश्व (हरिश्चन्द्र का पुत्र) नहीं था--अपितु यह नाम ही स्वयं 'बहु-धमक' का पर्याय एवं अपभ्रंश है। लंका-विन्ध्याचल, जो कि भारत की रीढ़ (तु० पंजाबी में 'लक' ) हैं। रावण की 'लङ्का' ( गोंडवाना ?) कहीं विन्ध्य-शिखर पर थी-जहाँ के गोंड आजकल भी अपने को रावण के वंशज बताते हैं, जहाँ के ओरावा आज भी अपने को वानरों के वंशज बतलाते हैं, जहाँ हर टीले ( शृङ्ग) को 'लंका' तथा हर नदी को 'गोदा' कहते हैं। स्वयं रामायण के अनुसार अयोध्या
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