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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ७७२] -- - (५७ ई० पू०) पराजित कर इसे अपनी राजधानी बनाया था। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य (द्वि०) ने मुराष्ट्र-मालव देश के शकों को भारत से निर्वासित कर उज्जैन की प्राचीन परम्पराओं को अन्ततः समाप्त कर दिया। गाथाओं में उदयन की प्रेम-लीलाओं का भी इधर से ही सम्बन्ध रहा है। शहर के मध्य में कभी यहाँ कालप्रियनाथ भगवान् का एक मन्दिर था, जहाँ शिवपुराण के प्रसिद्ध १२ ज्योतिलिङ्गों में एक की प्रतिष्ठा थी। उ(ओ):-उड़ीसा, उत्कल (उत्-कलिंग, अर्थात् कलिंग का उत्तर भाग)। इसकी दक्षिणी सीमा पर जगन्नाथ (पुरी)का प्रख्यात मन्दिर था। पुराणों के युग में उत्कल तथा कलिंग का विभाजन हो चुका था। उत्तरकुरु-गढ़वाल तथा हूणदेश का उत्तरीय भाग, जो हिमालय के परतर प्रदेशों का एक पुंज था-और जिसे अर्जुन ने अपनी दिग्विजय में युधिष्ठिर के साम्राज्य का अङ्ग बना लिया था। उत्तरापथ-काश्मीर तथा काबुल का एक राज्य' । २. उत्तर भारत (भारतवर्षे)। उत्तरमद्र-फारस में 'मद' प्रान्त, जिसमें अवस्ता का 'आर्यानन बाजों' (आर्य-अपवर्ग) भी सम्मिलित था। उत्तरविदेह-नेपाल का दक्षिण भाग, जिसकी राजधानी गन्धवती थी। ( स्वयम्भू पुराण) उत्पलारण्य-कानपुर से १४ मील दूर (आधु० बिठूर'), 'वाल्मीकि-आश्रम', जहाँ सीता ने प्रवास में लव तथा कुश को जन्म दिया था। यहीं पर, सरस्वती तथा दृषद्वती के 'मध्यदेश' (ब्रह्मावर्त) में ध्रुव के पिता उत्तानपाद ने 'प्रतिष्ठान' की स्थापना की थी। उदयगिरि-उड़ीसा में भुवनेश्वर के पाँच मील पूर्व एक पर्वत, जिसकी प्रसिद्ध गुहाओं में ई० ५०० पू०-५०० ई० के सहस्र वर्षों में भारतीय कलाकार अपना सर्वस्व उँडेलते रहे । उदीच्य (भूमि)-सरस्वती के उत्तर-पश्चिम का प्रदेश । ( अमरकोश) उरग (पुर)-काश्मीर के पश्चिम में, जेहलम तथा सिन्ध नदियों के बीच का प्रदेश ( हज़ारा); उरशा, अभिसारा ( मत्स्य० )। २. त्रिचनापल्ली = उरैपुर, जो छठी शती में पाण्डवों की. राजधानी थी; नागपत्तन (?)। (रघु०) ११वीं शती में चोकों का सम्पूर्ण तमिल देश पर प्रभुत्व जम चुका था। 'पवनदूत' का कवि इसे, ताम्रपर्णी पर प्रतिष्ठित करता हुआ, भुजंगपुर नाम से स्मरण करता है। ठरविल्व (ल्ल)-'गया' के ६ मील दक्षिण में, 'बुद्धगया', जहाँ ६ठी शती ई० पू० में भगवान बुद्ध ने बोध प्राप्त किया था। यहीं से बोधिवृक्ष की शाखाओं का देश-विदेश में प्रतिरोपण हुआ था। आज यहाँ एक महान् विहार भी है, जिसकी स्थापना छठी शती ई० पू० में अमरदेक ने की थी। शक्षपर्वत-विन्ध्य की पूर्वं शाखा जो शोण, शुक्तिमती, नर्मदा, महानदी आदि का उद्गम है। ऋषिपत्तन ( काशी में) इसिपत्तन; सारनाथ । (ललितविस्तर) ऋष्यमूक-किष्किन्धा में (तुङ्गभद्रा पर ) पम्पा का उद्गमस्रोत । (ऋष्य) श्रृंगगिरि-मैसूर में बैलूर के उत्तर में एक पर्वतशृङ्ग, जहाँ स्वामी शंकराचार्य ने वैदिक धर्म के पुनरुद्धार के लिए (चार मठों में, दक्षिण में ) 'शृङ्गेरी' का प्रसिद्ध मठ स्थापित किया था। (शंकरविजय) एल(पुर-एलोरा। एरण्डपल्ल-खानदेश । ( हरिषेणप्रशस्ति) एरिकिण-एरण। औदुम्बर-जि० गुरदासपुर । कण्वाश्रम-सहारनपुर तथा गढ़वाल में से गुज़रती मालिनी ('चुका') नदी के किनारे ऋषि कण्व का आश्रम था, जहाँ शकुन्तला का भरण-पोषण हुआ था। (कोटद्वार से ५ किलोमीटर. की दूरी पर) । (शतपथ.) For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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