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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ७६८ ] ४.सोपानारोहणन्याय :-सोपानारोहणन्याय अर्थात् सीढियाँ चढ़ने का दृष्टान्त । जैसे मनुष्य छत पर एकाएक नहीं जा पहुँचता, एक-एक सीढ़ी चढ़कर ही पहुँचता है, वैसे ही ज्ञानादि की प्राप्ति भी क्रमशः ही होती है। ऐसे ही अवसर इस न्याय के प्रयोगार्थ उचित हैं । जैसे'सोपानारोहणन्यायेनैव भवति विद्योपचयो विद्यार्थिनां, धनवृद्धिश्च सज्जनानाम् ।' ८५. स्थालीपुलाकन्याय :- स्थालीपुलाकन्याय अर्थात् देगचे और पुलाव का न्याय । जब किसी देगचे में चावल पकाये जाते हैं तब पाचक प्रत्येक दाने को निकाल कर नहीं देखता कि वह गल गया है या नहीं। दो चार दाने देखकर ही अनुमान कर लेता है कि सब के सब गल गये या कुछ कसर है। इसी प्रकार जहाँ किसी समुदाय के दो-चार व्यक्तियों से सबके सम्बन्ध में कुछ अनुमान किया जाता है, वहाँ इस न्याय का इस प्रकार व्यवहार किया जाता है-'विद्यालयनिरीक्षकाः स्थालीपुलाकन्यायेनैव विद्यार्थिनां योग्यता परीक्षन्ते ।' ८६. स्थावरजंगमविषन्याय :-अथ है-स्थावर और जगम विष का दृष्टान्त । पौधों और खनिज द्रन्यों के विष स्थावर विष कहलाते हैं तथा प्राणियों के विष जंगम विष । कहते हैं, विष को विष नष्ट करता है, जैसे कि महाभारत की कथा में भीमसेन को दुर्योधन द्वारा दिया हुआ स्थावर विध नदी में साँपों के जंगम विष से दूर हो गया था। इसी प्रकार जहाँ एक वस्तु का प्रतिकार दूसरी से हो जाय, वहाँ य: न्याय प्रयोक्तव्य है। यथा-'वर्तमाने बहूनां रोगाणां चिकित्सा स्थावर जंगमविषन्यायेनैव विधीयते।' २७. स्थूणानिखननन्यायः-स्थूगानिखननन्याय अर्थात् खंबा गाड़ने का न्याय । जैसे भूमि में खंबा गाड़ना हो तो उसे बार-बार हिलाकर गहरा ठोंका जाता है; वैसे ही अपने पक्ष के सुसमर्थन के लिए जब कोई वक्ता, लेखक आदि अनेक युक्तियाँ, दृष्टान्त आदि प्रस्तुत करता है तब यह न्याय प्रयुक्त होता है । यथा-'स्थूगानिखननन्यायेन समर्थयात प्रवक्ता स्वकीय पक्षं दृष्टान्तपरम्परया।' म. स्वामिभृत्यन्याय :-स्वामिभृत्यन्याय अर्थात् मालिक और नौकर का न्याय। स्वामी और सेवक में पोषक तथा पोष्य या धारक और धार्य का सम्बन्ध होता है। इसी प्रकार का सम्बन्ध जहाँ दो वस्तुओं या व्यक्तियों में दिखाई दे, वहाँ उक्त न्याय व्यवहृत होता है। यथा-'इह लोके सर्वत्र जीवेश्वरयोः व्यवहारः स्वामिभृत्यन्याय इव दृश्यते।' ९. स्वेदजनिमित्तेन शाकटत्यागन्याय:-इस न्याय का अर्थ है-पसीने से उत्पन्न कीड़ों के कारण वस्त्र फेंक देने का न्याय । इसी को कहीं पर 'यूकाभिया कन्थात्यागन्यायः' भी कहते हैं जिसका हिन्दी रूपान्तर 'जुओं के डर से गुदड़ी नहीं फेंकी जाती है। आशय यह है कि सामान्य भयों से भीत होकर भारी हानि सहन करना बुद्धिमत्ता नहीं है। यथा-परीक्षायां वैफल्यमपि संभवतीति भयेन परीक्षायां छात्रा न सम्मिलिता भवेयुरिति न, स्वेदजनिमित्तेन त्यागन्यायेन ।' १०.हृदनक्रन्याय :--हृदनक्रन्याय का अर्थ है-झील और मगर का दृष्टान्त । इसका आशय 'वनसिंहन्याय' के समान है । विस्तारार्थ वहीं देखिए । For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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