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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सप्तम परिशिष्ट प्राचीन भारत का भौगोलिक परिचय मातृ संस्कृति से अपना सम्बन्ध स्थापित करने के लिए जहाँ मातृभाषा का परिचय आवश्यक है, वहाँ मातृभूमि के विषय में भी कुछ-न-कुछ ज्ञान अपरिहार्य है। इसी ध्येय से प्रस्तुत अनुक्रमगी हम जोड़ रहे हैं। जिस वृद्ध भारत के विषय में हम सदा गर्व अनुभव करते हैं, उसके तीर्थादि स्थानों के सम्बन्ध में परिचयात्मक संकेत प्राचीन साहित्य में जहाँ-तहाँ बिखरे पड़े हैं। संस्कृत-नाटकों के कथा-प्रवाह को भी, उनकी पृष्ठभूमि के अभाव में, समझ सकना असम्भव है। हमारी विभिन्न बोलियों, रीति-वृत्तियों, कवि-समयोक्तियों के मूलोद्गम भी तो लोक-संस्कृति के यही उर्वर प्रदेश ही थे। राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने का जितना श्रेय अश्वमेध की परम्परा को अक्षुण्ण रखने वाले हमारे चक्रवती सम्राटों को रहा है, उतना ही श्रेय इस देश के महाकवियों (वाल्मीकि, व्यास ) को भी है। मेघदूत का संदेशहर बादल स्वयं कवि का उदार हृदय है, जिसके मुक्त व्योम में उमड़ने-उड़ने में भारत, मानो एक घोंसले में आबद्ध हो गया है। हमारे प्राचीन भूगोल को लेकर कोई क्रमबद्ध अनुसन्धान अभी तक नहीं किया गया। श्री नन्दूलाल दे की 'दि जिओग्राफिकल डिक्शनरी ऑव एन्शेण्ट एण्ड मिडीवल इण्डिया' (प्रथम संस्करण १८८९, द्वितीय १९२७) आज स्वयं संशोधन चाहती हैं । डा. वासुदेवशरण अग्रवाल ने जिस प्रकार पाणिनिकालीन तथा बाणकालीन भारतवर्ष के सांस्कृतिक रूप को एकत्रित करने का यत्न किया है। जिस प्रकार डा० ऑरेलस्टाइन ने काश्मीर के विस्मृत नामों का उद्धार किया था, उसी प्रकार की बृहत्तर-भारत की क्रमिक कहानी के लेखक को अभी जन्म लेना है। प्राचीन भारत के कुछ एक नामों का तुलनात्मक उल्लेख हम कर रहे हैं, इस आशा से कि कोई अज्ञात युवक, एक ही सही, उस 'प्रथम प्रभात' के संस्पर्श से पुलकित होकर अनुसन्धान की इस अछूती दिशा में प्रयत्नशील हो जाए। अंग-प्राचीन भारत के १६ 'राजनीतिक' जनपदों में एक, जो कभी रोमपाद ( रामायण ) तथा कर्ण ( महाभारत ) के शासन में था । आजकल भागलपुर के आसपास का प्रदेश । अंजनगिरि-पंजाब की 'सुलेमान' पर्वतमाला ( वराह०)। अगस्त्याश्रम-नासिक, कोल्हापुर (बम्बई ), उत्तरप्रदेश, गढ़वाल, सतपुड़ा आदि में ऋषि अगस्त्य के नाम से प्रसिद्ध आश्रम। अगस्त्य ही वे 'चरित्र-विजयी' वीर थे, जिन्होंने सर्वप्रथम आर्य सभ्यता का दक्षिण में प्रवेश संभव किया था। लोगों का विश्वास है कि अगस्त्य आज भी ताम्रपर्णी के उद्गम स्रोत (तिनिवेली में ) 'अगस्त्यकूट' पर समाधिस्थ हैं। अचिन्त-मध्यभारत में एलोरा के प्रायः ६० मील उत्तरपूर्व की ओर 'अजिण्ठा' ('अजन्ता' उच्चारण अशुद्ध है) नामक गुहा-समूह, जहाँ (बौद्धों के) योगाचार्य मत के संस्थापक आर्य असंग का प्रथम 'आश्रम' था। गुहाओं में भव्यचित्रकला का अङ्कन विहार के स्थविर 'अचल' के आदेश पर ५वी-६ठी शती में सम्पन्न हुआ था। अचि(जि)रावती-अवध की राप्ती (रेवती) नदी, जिस पर कभी श्रावस्ती नगर बसा हुआ था । २. इरावती (रावी)। (वराह०) • संकेतों के विवरण के लिए ग्रन्थारम्भ में संकेत-सूची देखिए । - ४६ For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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