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पञ्चम परिशिष्ट
संस्कृत-साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय अनंगहर्ष-ये चेदिदेश के कलचुरीवंशीय नृप नरेन्द्रवर्धन के पुत्र थे। वास्तविक नाम माउराज (मातृराज ) था। समय अष्टम शतक का उत्तरार्द्ध है। इनकी कृति 'तापस वत्सराज' (नाटक) में उदयन तथा वासवदत्ता की प्रसिद्ध कथा है। 'मायुराजसमो जज्ञे नान्यः कलचुरिः कविः' (राजशेखर)। अप्पय दीक्षित-इनका जन्म भारद्वाजगोत्रीय रंगराज के गृह में १५५४ ई० में काञ्ची के समीप मद्यपलम में हुआ था। ये अनेक वर्षों तक वेल्लोर और विजयनगर की राजसभाओं में सम्मानित रहे। प्रख्यात वैयाकरण भट्ठोजीदीक्षित को वेदान्त इन्हीं ने पढ़ाया था। पूर्व तथा उत्तरमीमांसा के ये पारदृश्वा पंडित जे । १६२६ ई० में इन्होंने ग्यारह विद्वान् पुत्रों की उपस्थिति में चिदम्बरम् में सहर्ष प्राणविसर्जन किया। काव्य, अलंकार, तर्क, दर्शन आदि अनेक विषयों पर इन्होंने १०४ ग्रंथों की रचना की जिनमें से काव्यकृतियाँ निम्नलिखित हैं-शिवपंचाशिका, दशकुमारचरितसंग्रह, पंचरत्नस्तव, शिवकर्णामृत, वैराग्यशतक, भक्तामरस्तव, शान्तिस्तव, रामायणतात्पर्यनिर्णय, भरतस्तव, वरदराजस्तव, आदित्यस्तोत्ररत्न आदि। वसुमतीचित्रसेनविलास (नाटक), चित्रमीमांसा, वृत्तिवात्तिक, कुवलयानन्द (अलंकार ) आदि के अतिरिक्त इन्होंने कई ग्रंथों पर टीकाएँ भी रची हैं । अमरुक-इस कवि का वंश, देश, काल आदि अज्ञात है। आनन्दवर्द्धन ने 'ध्वन्यालोक' में इन के 'अमरुकशतक' के शृङ्गारी मुक्तकों की सरसता की मुक्तकंठ से प्रशंसा की है। अतः ये नवमी शताब्दी से पूर्व विद्यमान थे। ये शब्द-कवि न थे, रस-कवि थे। हिन्दी के बिहारी, पद्माकर आदि कवियों पर इनके काव्य का पर्याप्त प्रभाव लक्षित होता है। अश्वघोष-संस्कृत के बौद्ध कवियों में सर्वश्रेष्ठ हैं। इनका जन्म साकेत में सम्भवतः ब्राह्मणवंश में सुवर्णाक्षी के गर्भ से हुआ था। परम्परानुसार ये महाराज कनिष्क (७८ ई० ) के गुरु तथा आश्रित कवि थे। ये दार्शनिक तथा संगीतज्ञ भी थे। बौद्ध बनने के बाद इन्होंने बौद्ध-धर्म के प्रचार में भरसक सहयोग दिया। 'सौन्दरानन्द' तथा 'बुद्धिचरित' इनके प्रख्यात महाकाव्य हैं । 'सौन्दरानन्द' के १८ सर्ग हैं। उनमें बुद्ध के उपदेश से उनके अनुज नन्द द्वारा पत्नी सुंदरी के परित्याग तथा दीक्षाग्रहण की कथा है। 'बुद्धचरित' के २८ सर्गों में से १७ उपलब्ध हैं और बुद्धचरित-विषयक हैं । वैदी रीति में रचित ये महाकाव्य संस्कृत काव्यसाहित्य के अलंकार हैं। अश्वघोष संस्कृत के प्रथम बौद्ध नाटककार हैं। इनके तीन नाटक उपलब्ध हुए हैं। 'शारिपुत्रप्रकरण' नौ अंकों में है और पूर्ण है। इसमें बुद्ध के उपदेश से शारिपुत्र और मौद्गल्यायन के दीक्षित होने का उल्लेख है। शेष दो नाटक लुप्तनामक और खण्डित हैं। उनमें एक का कथानक 'प्रबोधचन्द्रोदय' के समान रूपकात्मक है और दूसरे का 'मृच्छकटिक' के तुल्य वेश्यानायकप्रणयात्मक। आर्यशूर-ये बौद्धकवि सम्भवतः पाँचवीं शताब्दी में विद्यमान थे। 'जातकमाला' तथा 'पारमितासमास' इनकी दो प्रख्यात कृतियाँ हैं। इनकी कीति का आधार-स्तम्भ 'जातक-माला' है जिसमें महात्मा बुद्ध के ३४ जन्मों की कथाएँ गद्य-पद्यमयी सरस भाषा में वर्णित हैं। दूसरे काव्य में दान, शील, क्षान्ति आदि विषयों पर रचना की गई है। 'जातकमाला', 'पालिजातक' के आधार पर रचित स्वतंत्र कृति है। इसके 'पद्यभाग के समान गद्यभाग भी मुश्लिष्ट, सुन्दर तथा सरस
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