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[२] (घ) मात्रिक वा जाति छन्द
आर्या (विषम छन्द) लक्षण–यस्याः पादे प्रथमे, द्वादशमात्रास्तथा तृतीयेऽपि ।
अष्टादश द्वितीये, चतुर्थके पञ्चदश सार्या ॥ अर्थ आर्याछन्द के प्रथम और तृतीय चरण में १२-१२ मात्रायें, द्वितीय में १८ तथा चतुर्थ में १५ मात्रायें होती हैं । (१२, १८, १२, १५ मात्रायें ) उदाहरण
ss ।।।।।।।। (क) सिंहः शिशुरपि निपतति,
।।।।।। । ।।।ss मदमलिनकपोलभित्तिषु गजेषु । ।।।।sss प्रकृतिरियं सस्ववतां,
15SIsss . न खलु वयस्तेजस हेतुः। = १५ (ख) कवि निर्धन भी होकर,
शठ की सेवा कभी न करता है । रत्नाकर में जाकर, हंस कभी क्या विचरता है ॥ ( रामचरित उपाध्यायः)
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