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(ख ) मत्त-दन्ति-राज-राजि, वाजिराज राजि कै,
हेम हीर मुक्त चीर, चार साज साजि के। वेष वेषवाहिनी, अशेष वस्तु सोधि यो दाइजो विदेहराज, भाँति भाँति को दियो ।। ( केशवदास ) प्रति चरण १६ वर्णवाले छन्द
पंचचामर लक्षण-जरौ जरौ ततो जगौ च पंचचामरं वदेत् ॥ (८, ८ या ४, ४, ४, ४ पर विराम )
अर्थ-पंचचामर छन्द के प्रत्येक पाद में जगण, रगण, जगण, रगण, जगण और गुरु के क्रम से १६ वर्ण होते हैं। ८, ८ या ४, ४, ४, ४ पर यति होती है।
उदाहरण
(क)सुरदुमूलमण्डपे विचित्ररत्ननिर्मिते
।5।।s, ISI, SIS,ISI,S लसद्वितानभूषिते सलीलविभ्रमालसम् । सुरांगनाभवल्लवीकरप्रपंचचामर
स्फुरत्समीरवीजितं सदाच्युतं भजामि तम् ॥ (ख) उसी उदार की कथा सरस्वती बखानती,
उसी उदार से धरा कृतार्थ भाव मानती । उसी उदार की सदा सजीव कीर्ति कूजती, तथा उसी उदार को समस्त सृष्टि पूजती ॥ ( मैथिलीशरण गुप्त ) प्रति चरण १७ वर्णवाले छन्द
. (१) शिखरिणी लक्षण-रसै रुदैश्छिमा यमनसभला गः शिखरिणी । (६, ११ पर विराम )
मर्थ-जिस छन्द के प्रत्येक चरण में यगण, मगण, नगण, सगण, भगण और लघु-गुरु के क्रम से १७ अक्षर हों तथा रस (६ ) और रुद्र ( ११) पर यति हो उसे शिखरिणी कहते हैं। उदाहरण
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(क) करे श्लाघ्यस्त्यागः, शिरसि गुरुपादप्रणयिता, .
1ss, sss, ।।।, 115,51115 मुखे सत्या वाणी, विजयिभुजयोर्वीर्यमतुलम् । हृदि स्वच्छा वृत्तिः, श्रुतमधिगतं च श्रवणयो
विनाप्यैश्वर्येण, प्रकृतिमहतां मण्डनमिदम् ॥ ( भर्तृहरि) (ख) छटा कैसी प्यारी, प्रकृति-तिय के चन्द्रमुख की
नया नीला ओढ़े, बसन चटकीला गगन का। जरी-सल्मा-रूपी, जिस पर सितारे सब जड़े गले में स्वगंगा, अतिललित माला सम पड़ी ॥ ( सत्यशरण रतूड़ी)
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