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(ख) वे गृही धन्य हैं जो मनोहारिणी,
मिष्टभाषी सुशीला सदाचारिणी। धर्मशीला सती धीरताधारिणी, सुन्दरीयुक्त हैं प्रेमशृङ्गारिणी ॥ ( रामनरेश त्रिपाठी ) प्रति चरण १३ अक्षरवाले छन्द
(१) प्रहषिणी लक्षण-व्याशाभिर्मनजरगाः प्रहर्षिणीयम् । (विराम ३, १०)
अर्थ-प्रहर्षिणी छन्द के प्रत्येक पाद में मगण, नगण, जगण, रगण और गुरु के क्रम से १३ वर्ण होते हैं। तीन और आशा ( दिशा १०) पर यति होती है।
उदाहरण
-- -- - --गु (क) ते रेखाध्वजकुलिशातपत्रचिह्न,
sss ||1,151, Sts,s सम्राजश्चरणयुगं प्रसादलभ्यम् । प्रस्थानप्रणतिभिरंगुलीषु चक्रः
मौलिस्रकच्युतमकरन्दरेणुगौरम् ॥ (रघुवंश ४।८८) (ख ) मानो जू, रँग रहि प्रेम में तुम्हारे,
प्राणों के, तुमहिं अधार हो हमारे। वैसो ही, विचरहु रास हे कन्हाई, भावै जो, शरद प्रहर्षिणी जुन्हाई ॥ ( भानुकवि)
(२) रुचिरा ( नामान्तर अतिरुचिरा) लक्षण-चतुर्ग्रहरतिरुचिरा जभस्जगाः। (विराम ४, ९ पर )
अर्थ-रुचिरा या अतिरुचिरा छन्द के प्रत्येक चरण में जगण, भगण, सगण, जगण और शुरु के क्रम से १३ वर्ण होते हैं । चार और ग्रह (९) पर यति होती है। उदाहरण
ज भ स ज -- -- - गु कदा मुखं वरतनु कारणाइते, 15 1,511,115,SI,s तवागतं क्षणमपि कोपपात्रताम् । अपर्वणि ग्रहकलुषेन्दुमण्डला, विभावरी कथय कथं भविष्यति ॥ (मालविकाग्निमित्रम् ११३ )
प्रति चरण १४ अक्षरवाले छन्द (१) वसन्ततिलका ( अन्य नाम-सिंहोन्नता तथा उद्धर्षिणी) लक्षण-उक्ता वसन्ततिलका तभजा जगौ गः।
अर्थ-वसन्ततिलका छन्द के प्रत्येक पाद में तगण, भगण, दो जगण और दो गुरु के क्रम से १४ वर्ण होते हैं।
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