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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ७३४ ) - - (ख) वे गृही धन्य हैं जो मनोहारिणी, मिष्टभाषी सुशीला सदाचारिणी। धर्मशीला सती धीरताधारिणी, सुन्दरीयुक्त हैं प्रेमशृङ्गारिणी ॥ ( रामनरेश त्रिपाठी ) प्रति चरण १३ अक्षरवाले छन्द (१) प्रहषिणी लक्षण-व्याशाभिर्मनजरगाः प्रहर्षिणीयम् । (विराम ३, १०) अर्थ-प्रहर्षिणी छन्द के प्रत्येक पाद में मगण, नगण, जगण, रगण और गुरु के क्रम से १३ वर्ण होते हैं। तीन और आशा ( दिशा १०) पर यति होती है। उदाहरण -- -- - --गु (क) ते रेखाध्वजकुलिशातपत्रचिह्न, sss ||1,151, Sts,s सम्राजश्चरणयुगं प्रसादलभ्यम् । प्रस्थानप्रणतिभिरंगुलीषु चक्रः मौलिस्रकच्युतमकरन्दरेणुगौरम् ॥ (रघुवंश ४।८८) (ख ) मानो जू, रँग रहि प्रेम में तुम्हारे, प्राणों के, तुमहिं अधार हो हमारे। वैसो ही, विचरहु रास हे कन्हाई, भावै जो, शरद प्रहर्षिणी जुन्हाई ॥ ( भानुकवि) (२) रुचिरा ( नामान्तर अतिरुचिरा) लक्षण-चतुर्ग्रहरतिरुचिरा जभस्जगाः। (विराम ४, ९ पर ) अर्थ-रुचिरा या अतिरुचिरा छन्द के प्रत्येक चरण में जगण, भगण, सगण, जगण और शुरु के क्रम से १३ वर्ण होते हैं । चार और ग्रह (९) पर यति होती है। उदाहरण ज भ स ज -- -- - गु कदा मुखं वरतनु कारणाइते, 15 1,511,115,SI,s तवागतं क्षणमपि कोपपात्रताम् । अपर्वणि ग्रहकलुषेन्दुमण्डला, विभावरी कथय कथं भविष्यति ॥ (मालविकाग्निमित्रम् ११३ ) प्रति चरण १४ अक्षरवाले छन्द (१) वसन्ततिलका ( अन्य नाम-सिंहोन्नता तथा उद्धर्षिणी) लक्षण-उक्ता वसन्ततिलका तभजा जगौ गः। अर्थ-वसन्ततिलका छन्द के प्रत्येक पाद में तगण, भगण, दो जगण और दो गुरु के क्रम से १४ वर्ण होते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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