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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - were w eream उदाहरण (क) मया तव किञ्चिदकारि कदापि, । 5 ।।s I, ISI, I S। विलासिनि ! वाक्यमनुस्मरताऽपि । तथापि मनस्तव नाश्वसनाय, व्रजामि कुतो भवदीमपहाय ॥ ( वाणीभूषण) (ख) बड़े जन को नहिं माँगन जोग, फबै छल साधन में लघु लोग । रमापति विष्णु असंग अनूप, धों एहि कारण वामन रूप ।। ( देवीप्रसाद पूर्ण ) (६) भुजङ्गप्रयात लक्षण-भुजंगप्रयातं भवेद्यैश्चतुर्भिः । ( पादान्त में विराम ) अर्थ-भुजंगप्रयात के प्रत्येक चरण में चार यगण के क्रम से १२ वर्ण होते हैं। उदाहरण ___ य य य य (क) धनैर्निष्कुलीनाः कुलीना भवन्ति, 155,ss, । ss, Iss धनरापदं मानवा निस्तरन्ति । धनेभ्यः परो बान्धवो नास्ति लोके, धनान्यर्जयध्वम् धनान्यर्जयध्वम् ॥ (ख ) अजन्मा न आरंभ तेरा हुआ है, किसी से नहीं जन्म तेरा हुआ है। रहेगा सदा अन्त तेरा न होगा, किसी काल में नाश तेरा न होगा ॥ ( नाथूरामशकर ), (७) स्रग्विणी लक्षण-रैश्चतुर्भिर्युता स्रग्विणी सम्मता । ( पादान्त में यति ) अर्थ-स्रग्विणी के प्रत्येक पाद में चार रगण के क्रम से १२ अक्षर होते हैं। उदाहरण (क) इन्द्रनीलोपलेनेव या निर्मिता s। 5, SIS, S। s, s Is शातकुम्भद्रवालंकृता शोभते । नव्यमेघच्छविः पीतवासा हरेमूतिरास्तां जयायोरसि स्रग्विणी॥ For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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