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[ ७३२ ]
( ख ) यों ही बड़ा हेतु हुए बिना कहीं, होते बड़े लोग कठोर यों नहीं ।
उदाहरण-
वे हेतु भी यों रहते सुगुप्त हैं, ज्यों अद्रि अम्भोनिधि में प्रलुप्त हैं || ( चन्द्रहास ) ( ३ ) तोटक
लक्षण -- इह तोटकमम्बुधिसः प्रथितम् । ( पादान्त में विराम ) अर्थ - तोटक के प्रत्येक चरण में चार सगण होते हैं ।
उदाहरण
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(क) त्यज तोटकमर्थनियोगकरं 11 ऽ, । । ऽ, ।। ऽ, ।। ऽ प्रमदाऽधिकृतं व्यसनोपहतम् । उपधाभिरशुद्धमतिं सचिवं
नरनायक ! भीरुकमायुधिकम् ॥ (छन्दोवृत्ति )
( ख ) अब लों न कहीं वह देश मिला,
इसका न जिसे उपदेश मिला ।
उस गौरव के गुण अस्त हुए,
गुरु के गुरु शिष्य समस्त हुए || ( नाथूराम शंकर ) (४) द्रुतविलम्बित लक्षण -- द्रुतविलम्बितमाह नभौ भरौ । ( पादान्त में विराम )
अर्थ - द्रुतविलम्बित के प्रत्येक चरण में नगण, भगण, भगण और रगण के क्रम से १२ अक्षर
होते हैं ।
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( क ) तरणिजापुलिने नववल्लवी
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। ॥, ऽ परिषदा सह केलिकुतूहलात् । द्रुतविलम्बितचारुविहारिणं
हरिमहं हृदयेन सदा वहे || (छन्दोमंजरी )
( ख ) मन ! रमा रमणी रमणीयता,
मिल गई यदि ये विधि योग से ।
पर जिसे न मिली कविता-सुधा
रसिकता सिकता-सम है उसे ॥ ( रामचरित उपाध्याय ) (५) मौक्तिकदाम
लक्षण -- चतुर्जगणं वद मौक्तिकदाम । ( पादान्त में विराम )
अर्थ – मौक्तिकदाम (हिन्दी, मोतियदाम ) बंद के प्रत्येक चरण में चार जगण के क्रम से २२ अक्षर होते हैं ।
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