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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ७३२ ] ( ख ) यों ही बड़ा हेतु हुए बिना कहीं, होते बड़े लोग कठोर यों नहीं । उदाहरण- वे हेतु भी यों रहते सुगुप्त हैं, ज्यों अद्रि अम्भोनिधि में प्रलुप्त हैं || ( चन्द्रहास ) ( ३ ) तोटक लक्षण -- इह तोटकमम्बुधिसः प्रथितम् । ( पादान्त में विराम ) अर्थ - तोटक के प्रत्येक चरण में चार सगण होते हैं । उदाहरण स स स स LLLL (क) त्यज तोटकमर्थनियोगकरं 11 ऽ, । । ऽ, ।। ऽ, ।। ऽ प्रमदाऽधिकृतं व्यसनोपहतम् । उपधाभिरशुद्धमतिं सचिवं नरनायक ! भीरुकमायुधिकम् ॥ (छन्दोवृत्ति ) ( ख ) अब लों न कहीं वह देश मिला, इसका न जिसे उपदेश मिला । उस गौरव के गुण अस्त हुए, गुरु के गुरु शिष्य समस्त हुए || ( नाथूराम शंकर ) (४) द्रुतविलम्बित लक्षण -- द्रुतविलम्बितमाह नभौ भरौ । ( पादान्त में विराम ) अर्थ - द्रुतविलम्बित के प्रत्येक चरण में नगण, भगण, भगण और रगण के क्रम से १२ अक्षर होते हैं । न भ भ र 1 7 ( क ) तरणिजापुलिने नववल्लवी ।।, ऽ । ।, ऽ । ऽ । ॥, ऽ परिषदा सह केलिकुतूहलात् । द्रुतविलम्बितचारुविहारिणं हरिमहं हृदयेन सदा वहे || (छन्दोमंजरी ) ( ख ) मन ! रमा रमणी रमणीयता, मिल गई यदि ये विधि योग से । पर जिसे न मिली कविता-सुधा रसिकता सिकता-सम है उसे ॥ ( रामचरित उपाध्याय ) (५) मौक्तिकदाम लक्षण -- चतुर्जगणं वद मौक्तिकदाम । ( पादान्त में विराम ) अर्थ – मौक्तिकदाम (हिन्दी, मोतियदाम ) बंद के प्रत्येक चरण में चार जगण के क्रम से २२ अक्षर होते हैं । For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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