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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ७३१] - - उदाहरण र न भ - -गुगु (क) रत्नभङ्गविमलैर्गुणतुङ्गे SIS, ||1,511,ss रथिनामभिमतार्पणसक्तैः। स्वागताऽभिमुखनम्रशिरस्कैः जीव्यते जगति साधुभिरेव ॥ (ख) रानि ! भोगि गहि नाथ कन्हाई, साथ गोप जन आवत धाई। स्वागतार्थ सुनि आतुर माता, धाइ देखि मुद सुन्दर गाता ।। ( भानु कवि ) प्रति चरण १२ अक्षरवाले छन्द (१) वंशस्थ ( नामान्तर-वंशस्थविल तथा वंशस्तनित) लक्षण-जतौ तु वंशस्थमुदीरितं जरौ । ( पादान्त में विराम ) अर्थ-वंशस्थ के प्रत्येक पाद में जगण, तगण, जगण और रगण के क्रम से १२ अक्षर होते हैं ! उदाहरण (क) जनस्य तीव्रातपजार्तिवारणा ।।, 551,SI, SIS जयन्ति सन्तः सततं समुन्नताः । सितातपत्रप्रतिमा विभान्ति ये विशालवंशस्थतया गुणोचिताः॥ ( सुवृत्ततिलक) (ख) स्वरूप होता जिसका न भव्य है, न वाक्य होते जिसके मनोज्ञ है। अतीव प्यारा बनता सदैव हैं। मनुष्य सो भी गुण के प्रभाव से ।। ( हरिऔध ) (२) इन्द्रवंशा लक्षण-स्यादिन्द्रवंशा ततजैरसंयुतैः । (पादान्त में विराम ) अर्थ-इन्द्रवंशा के प्रत्येक पाद में दो तगण, जगण और रगण के क्रम से १२ वर्ण होते हैं । उदाहरण --- - - - (क) कुर्वीत यो देवगुरुर्द्विजन्मना 551, ss,SI, Sts मुर्वीपतिः पालनमर्थलिप्सया। तस्येन्द्रवंशेऽपि गृहीतजन्मन सआयते श्रीः प्रतिकूलवर्तिनी ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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