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[ ७३० ]
( ख ) पाकर मानव-देह धरा में,
पाशववृत्ति तजो जितना
1
पुच्छ विषाण विहीन पशु जो,
होन न चाहत प्रेम करो तो ॥ ( रामबहोरी शुक्ल )
( ५ ) शालिनी
लक्षण - शालिन्युक्ता तौ तगौ गोऽब्धिलोकैः ॥ ( ४, ७ पर विराम )
अर्थ - शालिनी के प्रत्येक पाद में मगण, दो तगण और दो गुरु के क्रम से ११ अक्षर होते हैं । अब्धि ( ४ ) और लोक ( ७ ) पर विराम होता है ।
उदाहरण
म
त
त
गुगु
( क ) अंधो हन्ति ज्ञानवृद्धिं विधत्ते
s ss, s s 1, s s 1, ऽ ऽ, धर्मं दत्ते काममर्थ च सूते । मुक्तिं दत्ते सर्वदोपास्यमाना, पुंसां श्रद्धाशालिनी विष्णुभक्तिः ॥
( ख ) कैसी कैसी ठोकरें खा रहा है, तीखी पीड़ा चित्त में ला रहा है
तौ भी प्यारे ! हाल तेरा वही है,
विद्वानों की पद्धती क्या यही है | ( छन्दशिक्षा )
( ६ ) रथोद्धता
लक्षण - रान्नराविह रथोद्धता लगौ । (विराम पाद के अन्त में )
अर्थ -- रथोद्धता के प्रत्येक चरण में रगण, नगण, रगण और लघु-गुरु के क्रम से ११ अक्षर होते हैं।
उदाहरण
न र
ल गु
किं त्वया सुभट ! दूरवर्जितं ऽ । ऽ, ।।।, 15, 15 नात्मनो न सुहृदां प्रियं कृतम् । यत्पलायनपरायणस्य ते याति धूलिरधुना रथोद्धता ॥
( ७ ) स्वागता
लक्षण --- स्वागतेति रनभाद्गुरुयुग्मम् । ( पादान्त में विराम ).
अर्थ-स्वागता के प्रत्येक पाद में रगण, नगण, भगण और दो गुरु के क्रम से ११ वर्णं होते हैं
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