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[ ७२६ ]
उदाहारण
----- -गुगु (क) जितो जगत्येष भवभ्रमस्तै
। ।,551, ISI, SS गुरूदितं ये गिरिशं स्मरन्ति । उपास्यमानं कमलासनाये
रुपेन्द्रबजायुधवारिनाथैः ॥ ख ) बड़ा कि छोटा कुछ काम कीजै,
परन्तु पूर्वापर सोच लीजै । विना विचारे यदि काम होगा, कभी न अच्छा परिणाम होणा।। (मैथिलीशरण गुप्त)
(३) उपजाति लक्षण-जिस छन्द के कुछ चरण इन्द्रवज्रा के हों और कुछ उपेन्द्रवज्रा के, उसे उपजाति कहते हैं। इसके १३ भेद होते हैं ।
टि-समान-संख्यक अक्षर तथा समान यतिवाले अन्य छन्दों के भी इसी प्रकार के मिश्रण का नाम उपजाति ही है। जैसे वंशस्थ और इन्द्रवंशा ( १२.१२ अक्षरों के छंद ) के मिश्रण से भी उपजाति छन्द बनता है। उदाहरण-(क) उत्साहसम्पन्नमदीर्घसूत्रं,
(इन्द्र.) क्रियाविधिज्ञं व्यसनेष्वसक्तम् । (उपे.) शूरं कृतज्ञं दृढ़सौहृदं च,
लक्ष्मीः स्वयं वाञ्छति वासहेतोः॥ (उ.) ( ख ) इच्छा न मेरी कुछ भी बनूँ मैं, (इ.)
कुबेर का भी जग में कुबेर। (उ.) इच्छा मुझे एक यही सदा है, (इ.) नये नये उत्तम ग्रंथ देखू ॥ (उ.) ( गिरधर शर्मा)
(४) दोधक ( अन्य नाम-बन्धु) लक्षण-दोधकनामनि भत्रयतो गौ । ( विराम पाद के अन्त में ) अर्थ-दोधक छन्द के प्रत्येक चरण में तीन भगण और दो गुरु के क्रम से ११ वर्ण होते हैं।
भ भ भ
- - -गु गु (क) दोधकमर्थविरोधकमुग्रं
5।।, STI, S।।, ss, स्त्रीचपलं युधि कातरचित्तम् । स्वार्थपरं मतिहीनममात्यं मुञ्चति यो नृपतिः स सुखी स्यात् ॥
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