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क्याबूढ़ा क्या जवान मौत केलिएसब समान मृत्योः सर्वत्र तुल्यता । खूटे के बल बछड़ा कूदे।
अन्यस्माल्लब्धपदो नीचः प्रायेण दु:महो भवति । ख्वाजे का गवाह मैंढक ।
अहो रूपमहो ध्वनिः। गंगा गए गंगाराम जमुना गए जमुनादास । भजन्ति वैतसी वृत्तिं मानवाः कालवेदिनः । ग़रीब को न दा की मार।
देवो दुर्बलघातकः । बारीब को संसार सूना।
१. सर्वे शून्यं दरिद्रस्य।
२. सर्वशून्या दरिद्रता । ग़रीब को सुख कहाँ ?
१. निर्धनस्य कुतः सुखम् ?
२. निर्धनता सर्वापदामास्पदम् । गुणी गुणों से भादर पाते हैं, आयु तथा गुणाः पूजास्थानं गुणिषु न च लिङ्गं न च वयः ।
लक्षणों से नहीं। गुरु बिना गत नहीं।
विना हि गुर्वादेशेन सम्पूर्णाः सिद्धयः कुतः ? गुस्सा बड़ा चंडाल है।
१. धर्मक्षयकरः क्रोधः।
२. क्रोधो मूलमनर्थानाम् । गेहूँ के साथ घुन भी पिस जाता है। अपेक्षन्ते हि विपदः किं पेलवमपेलबम् ? घर का जोगी जोगड़ा बाहर जोगी सिद्ध । स्वदेशजातस्य नरस्य नूनं गुणाधिकस्यापि भवे
दवज्ञा। घोड़ों का घर कितनी दूर?
किं दूरं व्यवसायिनाम् ? चुपड़ी और दो दो?
यथौषधं स्वादु हितं च दुर्लभम् । चमड़ी जाय दमड़ी न जाय ।
प्राणेभ्योऽप्यर्थमात्रा हि कृपणस्य गरीयसी। (कथा चार दिन की चाँदनी औ फिर अँधेरी रात । तिष्ठत्येकां निशां चन्द्रः श्रीमान् संपूर्णमण्डलः । जगत् मेड़-चाल है।
गतानुगतिको लोको न लोकः पारमार्थिकः । जब बुरे दिन आते हैं बुद्धि मारी जाती है। | १. विनाशकाले विपरीत बुद्धिः ।
२. प्रायः समापन्न विपत्तिकाले थियोऽपि पुंसा
मलिना भवन्ति । जब भाग्य ही सीधा न हो तो काम कैसे ! १. वक्रे विधौ वद कथं व्यवसायसिद्धिः । सिद्ध हो।
२. वामे विधौ न हि फलन्त्यभिवाञ्छितानि । जब लग पैसा गाँठ में तब लगताको यार! अम्बुगर्भो हि जीमूतश्चातकर भिनन्धते । ( रघु.) ज़बाँ शीरी मुल्क गीरी।
कः परः प्रियवादिनाम् ? मसात के वक्त गधे को भी बाप कहा महानपि प्रसङ्गेन नीचं सेवितुमिच्छति ।
जाता है। जहाँ न जाय रवि वहाँ जाय कवि । कवयः किं न पश्यन्ति ? जान किसे प्यारी नहीं।
कायः कस्य न वल्लभः ! जान है तो जहान है।
आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् । जिसका काम उसी को साजे,
अज्ञता कस्य नामेह नोपहासाय जायते । और करे तो डफली बाजे।
(कथासरित्सागर) जिसका खाएँ उसी का गीत गाएँ। को न याति वशं लोके मुखे पिण्डेन पूरितः ? जिसकी लाठी उसकी भैंस ।
औचित्यं गणयति को विशेषकायः । जिसके घर दाने उस के कमले (मूर्ख) लक्ष्मीर्यस्य गृहे स एव भजति प्रायो जगद्भी स्याने।
वन्द्यताम् । जितना गुड़ डालोगे उतना मीठा होगा। । अधिकस्याधिक फलम् । जितने मुँह उतनी बातें।
नवा वाणी मुखे मुखे। जिनको कछू न चाहिए तेई साहंसाह। । सुखमास्ते निःस्पृहः पुरुषः ।
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