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[७०१]
सूर्यापाये न खलु कमलं पुष्यति स्वामभि- । सूर्य के अस्त हो जाने पर कमल अपनी शोभा ख्याम् । ( शिशु०)
को घारण नहीं करता । सूर्य तपत्यावरणाय दृष्टेः कल्पेत लोकस्य | जब सूर्य चमक रहा हो तब रात्रि लोगों की कथं तमिस्रा ? ( रघुवंशे)
दृष्टि कैसे बंद कर सकती है ? सेवाधर्मः परमगहनो योगिनामप्यगम्यः। । सेवा-रूपी धर्म अत्यन्त कठिन है, योगी भी
वहाँ तक नहीं पहुँच सकते। स्तोत्रं कस्य न तुष्टये ? ( कुमार० ) प्रशंसा से कौन प्रसन्न नहीं होता ? स्त्रियश्चरित्रं पुरुषस्य भाग्यं देवो न जानाति | स्त्री के चरित्र और पुरुष के भाग्य को भगवान __ कुतो मनुष्यः ?
भी नहीं जानता, मनुष्य भ [ क्या जानेगा?' स्त्रियो नष्टा हाभर्तृकाः।
पति-हीन स्त्रियाँ नष्ट हो जाती हैं। स्त्रीणां पतिः प्राणा न बान्धवाः । ( कथा०) स्त्रियों का जीवन पति है, बन्धु नहीं। स्त्रीणां प्रियालोकफलो हि वेषः । (कुमार०) | स्त्रियाँ सौन्दर्यवर्द्धक परिधान पहनती हैं। स्त्री पुंवच्च प्रभवति यदा तद्धि गेहं विनष्टम् । जब स्त्री पुरुषवत् प्रभावशाली हो जाती है तब
घर नष्ट हो जाता है। स्त्रीबुद्धिः प्रलयावहा।
| स्त्री की बुद्धि प्रलयकारिणी होती है। स्त्रीभिः कस्य न खण्डितं भुवि मनः ? | भूमि पर स्त्रियों ने किस के हृदय को खण्डित
नहीं किया ? स्त्री विनश्यति रूपेण।
स्त्री रूप से नष्ट होती है। स्त्रीषु वाकसंयमः कुतः ? (कथा)
स्त्रियों में वाणी का संयम कहाँ ? स्नापितोऽपि बहुशो नदीजलैगर्दभः किमु नदी के जल से बहुत बार नहाने पर भी __ हयो भवेत् क्वचित् ?
__क्या कहीं गधा भी घोड़ा बनता है ? स्नुषात्वं पापानां फलमधनगेहेषु सुदृशाम् । निर्धन घरों की पुत्रवधू बनना सुन्दरियों के
पापों का फल है। स्पृशन्ति न नृशंसानां हृदयं बन्धुबुद्धयः। । सम्बन्धियों की सीख क्रूर जनों के हृदय को
(नैषध०) प्रभावित नहीं करती। स्पृशन्त्यास्तारुण्यं किमिव न हि रम्यं | यौवन में प्रविष्ट होती हुई मृगनयनी की कौन-सी सुगदृशः?
बात सुंदर नहीं होती? स्वकर्मसूत्रग्रथितो हि लोकः।
संसार अपने कर्मों के सूत्र से गूंथा हुआ है। स्वगृहे पूज्यते मूर्खः ।
मूर्ख अपने घर में ही पूजा जाता है। स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः।
ग्रामपति अपने गाँव में ही पूजा जाता है। स्वदेशजातस्य नरस्य नूनं
अपने देश के गुणी व्यक्ति की भी उपेक्षा की: गुणाधिकस्यापि भवेदवज्ञा।
__ जाती है। स्वदेशे पूज्यते राजा।
राजा की पूजा अपने ही देश में होती है। स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः। अपने धर्म में मरना अच्छा है, पर-धर्म भयंकर
होता है। स्वपन्त्यज्ञा हि निश्चेष्टाः, कुतो निद्रा | अज्ञानी गहरी नींद में सोते हैं, विवेकियों को विवेकिनाम् ?
___ नींद कहाँ ? स्वपदाच्च्यवमानस्य कस्याज्ञां को हि | अपनी पदवी से च्युत हुए की आज्ञा कौन' मन्यते ? ( कथा०)
___ मानता है ? स्वभाव एवैष परोपकारिणाम् । परोपकारियों का यह स्वभाव ही है। स्वभावतः सर्वमिदं हि सिद्धम् ।
यह सब स्वभाव से ही सिद्ध है।
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