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सर्व शून्यं दरिद्रस्य।
दरिद्र के लिए सब कुछ सूना है। सर्व सावधि नावधिः कुलभुवां प्रेम्णः सबकी सीमा है परन्तु कुलीन नारियों के प्रेम परं केवलम् ।
की सीमा नहीं। सर्वनाशाय मातुलः।
मामा सर्वनाश कर देता है। सर्वलोकप्रतिष्ठायां यतन्ते बहवो जनाः। बहुत से व्यक्ति लोगों में प्रतिष्ठा पाने के लिए
उद्योग करते हैं। सांगे दुर्जनो विषम् ।
दुष्टजन के सभी अंगों में विष रहता है। सर्वारम्भास्तण्डुलप्रस्थमूलाः।
सभी उद्योग दूसरी भर धान के लिए हैं। सर्वा स्ववस्थासु रमणीयत्वमाकृतिविशेषा- | सुंदर व्यक्ति सभी दशाओं में सुंदर लगते हैं। __णाम् । (अभिज्ञा०) सर्व गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ते ।
सभी गुण धन पर आश्रित रहते हैं। सलजा गणिका नष्टा।
लज्जाशील वेश्या नष्ट हो जाती है। स सुहृद्व्यसने यः स्यात् ।
जो विपत्ति में सहायक है, वही मित्र है। सहते विपत्सहस्रं मानी नैवापमानलेशमपि। मानी मानव सहस्रों कष्ट सह लेता है, परन्तु
तनिक-सा भी अपमान नहीं। सहसा विदधीत न क्रियाम्
कोई भी कार्य एकाएक न करना चाहिए, अविवेकः परमापदां पदम् ।
__ अविवेक भारी आपत्तियों का कारण है। सहस्रषु च पण्डितः।
सहस्रों में कोई एक विद्वान् होता है। -सागरं वर्जयित्वा कुत्र महानद्यवतरति ? बड़ी नदी सागर के सिवा कहाँ आश्रय लेती है ?
( अभिशा०) साधने हि नियमोऽन्यजनानां
साधारण जन साधनों से कार्य सिद्ध करते हैं, योगिनां तु तपसाखिलसिद्धिः। (नैषध०)। योगियों को तप से सब सिद्धियाँ मिलती हैं। साधुः सीदति दुर्जनः प्रभवति प्राप्तौ कलौ इस कलियुग नाम के बुरे युग में सज्जन दुःख
पाते हैं और दुर्जन अधिकार जमाते हैं। साधूनां दुर्जनाद् भयम् ।
सज्जनों को दुर्जनों से भय होता है। सानुकूले जगन्नाथे विप्रियः सुप्रियो भवेत् । भगवान् अनुकूल हो तो विरोधी भी मित्र
बन जाते हैं। सामानाधिकरण्यं हि तेजस्तिमिरयोः कुतः ? | प्रकाश और अन्धकार एकत्र कैसे रह सकते हैं ?
(शिशुपालवधे) सारं गृह्णन्ति पण्डिताः।
बुद्धिमान सारग्राही होते हैं। सिद्धिर्भूषयते विद्याम् ।
सिद्धि विद्या को अलंकृत करती है। सुकविता यद्यस्ति राज्येन किम् ? यदि सुंदर काव्य रचना आती हो तो राज्य मे
क्या लाभ है? सुकृती चानुभूयैव दुःखमप्यश्नुते सुखम् । सुकमी मनुष्य दुःख सहकर भी सुख भोगता है।
(कथा०) सुखमास्ते निःस्पृहः पुरुषः।
कामनारहित मनुष्य सुखी रहता है। सुखार्थिनः कुतो विद्या?
सुखैषी को विद्या कहाँ ? सुतप्तमपि पानीयं शमयत्येव पावकम् । पानी भले ही खूब गर्म हो फिर भी अग्नि को
शान्त कर ही देता है। सुलभा रम्यता लोके दुर्लभं हि गुणार्जनम्। संसार में सुन्दरता सुलभ है, गुण-धारण दुर्लभ ।
(किरात.) सुलभो हि द्विषां भङ्गो, दुर्लभा सत्स्ववा- शत्रु का नाश करना सरल है, सज्जनों में च्यता । (किरात०)
प्रशंसा दुर्लभ।
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