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[ ६६८]
वृद्धा न ते ये न वदन्ति धर्मम् । | जो धर्म की बात नहीं कहते, वे वृद्ध नहीं। वृद्धा नारी पतिव्रता।
वृद्धा स्त्री पतिव्रता होती है। वेदाजानन्ति पण्डिताः।
बुद्धिमान् लोग वेद से ज्ञान पाते हैं। वेश्याङ्गनेव नृपनीतिरनेकरूपा ।
वेश्या के समान राजनीति भी अनेक स्प
धारण करती है। व्याघ्रस्य चोपवासस्य पारणं पशुमारणम् । भेड़िए के उपवास की पारणा पशु-वध होती है। व्याधितस्यौषधं मित्रम्।
औषध रोग का मित्र है । व्रताभिरक्षा हि सतामलंक्रिया। (किरात०) व्रत का पालन सज्जनों का भूषण है। शनोरपि गुणा वाच्या दोषा वाच्या शत्रु के भी गुणों का और गुरु के भी दोषों का गुरोरपि ।
कथन करना चाहिए। शरीरमायं खलु धर्मसाधनम् । ( कुमार०) | धर्म का प्रथम साधन शरीर ही है। शाम्येत् प्रत्युपकारेण नोपकारेण दुर्जनः ! दुष्ट जन उपकार से नहीं, अपकार से ही शान्त
(कुमार०)
___ होता है। शास्त्राद् रूढिर्बलीयसी।
शास्त्रों से रीति बलवती है। शीलं परं भूषणम् ।
शील सर्वोत्तम भूषण है। शीलं भूषयते कुलम् ।
शील कुल को अलंकृत करता है। शील हि विदुषां धनम् । ( कथा०) शील ही विद्वानों का धन है। शुभकृन्न हि सीदति । ( कथा )
शुभ कार्य करने वाला दुःखी नहीं होता। शुभस्य शीघ्रम् ।
भला काम शीघ्र ही कर देना चाहिए। शुष्कन्धने वह्निरुपैति वृद्धिम् ।
सूखे ईधन में आग तुरन्त फैल जाती है। शूरं कृतज्ञं दृढसौहृदं च
वीर, कृतज्ञ और दृढ़ मित्र के पास रहने के __लक्ष्मीः स्वयं याति निवासहेतोः। लिए लक्ष्मी स्वयं जाती है। शूरस्य मरणं तृणम् ।
वीर के लिए मृत्यु तृणवत् है। शोभन्ते विद्यया विप्राः।
ब्राह्मण विद्या से सुशोभित होते हैं। श्यालको गृहनाशाय।
साला घर का नाश कर देता है। श्रद्धया न विना दानम् ।
श्रद्धा-रहित दान दान नहीं। श्रेयसि केन तृप्यते ? (शिशु०)
मंगल से कौन तृप्त होता है ? श्रोत्रस्य भूषणं शास्त्रम् ।
शास्त्र कान का भूषण है। संसर्गजा दोषगुणा भवन्ति ।
दोष और गुण संगति से होते हैं। सकलं शीलेन कुर्याद्वशम् ।
शाल से सब को वशीभूत करना चाहिए। सकलगुणभूषा च विनयः।
नम्रता सब गुणों का भूषण है । सकलगुणसीमा वितरणम् ।
दान सब गुणों को सीमा है। सकलसुखसीमा सुवदना ।
सुमुखी सर्व सुखों की सीमा है । स क्षत्रियस्त्राणसहः सतां यः।
सज्जनों की रक्षा में समर्थ व्यक्ति क्षत्रिय है। संकटे हि परीक्ष्यन्ते प्राज्ञाः शूराश्च संगरे। बुद्धिमानों की परीक्षा संकट में और शूरों की
(कथा) परीक्षा संग्राम में होती है। सतां महासंमुखधाबि पौरुषम् । (नैषध०) | सज्जनों का पौरुष बड़ों पर ही प्रकट होता है । सतां हि सङ्गः सकलं प्रसूते ।
सत्संगति से सब कुछ प्राप्त होता है। सतां हि सन्देहपदेषु वस्तुषु प्रमाणमन्तः- संदिग्ध विषयों में सत्पुरुषों का अन्तःकरण ही करणप्रवृत्तयः । ( अभिज्ञान०)
प्रमाण होता है। स तु निरवधिरेकः सज्जनानां विवेकः। सज्जनों के विवेक की सीमा नहीं होती। सत्वाधीना हि सिद्धयः । ( कथा ) | सफलताएँ उत्साह के अधीन हैं ।
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