________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[ ६९६]
यादृशो यः कृतो धात्रा भवेत्तादृश एव सः। विधाता ने जिसे जैसा बना दिया वह वैसा ही
(कथा०) होता है। यादृशास्तन्तवः कामं तादृशो जायते पटः। जैसे तागे होते हैं वैसा कपड़ा बनता है ।
( कथा०) यानरत्नं हि तुरगः।
वाहनों में घोड़ा रत्न है। यान्ति न्यायप्रवृत्तस्य तिर्यञ्चोऽपि सहाय- | न्यायानुसार चलनेवाले की सहायता पशु-पक्षी ताम् । ( अनर्घराघवे)
भी करते हैं। या यस्य प्रकृतिः स्वभावजनिता केनापि न | जो जिसका सहज स्वभाव है, वह छोड़ा नहीं ___त्यज्यते ।
जा सकता। युक्तियुक्तं प्रगृह्णीयाद् बालादपि विचक्षणः। बुद्धिमान् को बच्चे की भी युक्ति युक्त बात मान
लेनी चाहिए। युद्धस्य वार्ता रम्या स्यात् ।
युद्ध के समाचार रोचक होते हैं। ये तु घ्नन्ति निरर्थकं परहितं ते के न | जो दूसरों के कार्यों को व्यर्थ हो नष्ट करते हैं, वे जानीमहे।
किस कोटि के होते हैं, हम नहीं जानते । येन केन प्रकारेण प्रसिद्धः पुरुषो भवेत् । मनुष्य को किसी भी उपाय से प्रसिद्धि प्राप्त
करनी चाहिए। यो यद् वपति बीजं हि लभते सोऽपि | जैसा बोएगा वैसा काटेगा।
तत्फलम् । (कथा) रक्षन्ति पुण्यानि पुराकृतानि ।
पूर्व पुण्य मनुष्य की रक्षा करते हैं । रत्नदीपस्य हि शिखा वात्ययापि न नश्यति । रत्नों के दीये को लौ आँधी से भी नहीं बुझतो । रत्नव्ययेन पाषाणं को हि रक्षितुमर्हति । कौन इतना समर्थ है जो पत्थर के रक्षार्थ रत्न
(कथा०)
व्यय करे। वनेऽपि दोषा प्रभवन्ति रागिणाम्।
| वन में भी दोष रागयुक्तों को दबा लेते हैं। वरं हि मानिनो सुत्युः, न दैन्यं स्वजना. प्रतिष्ठित व्यक्ति की मृत्यु अन् श्री किन्तु सम्बन्धियों ___ ग्रतः । ( कथा० )
के सामने दीनता बुरी।। वरं क्लेब्यं पुंसां न च परकलत्राभिगमनम् । | पुरुषों का नपुंसक होना अच्छा, परस्त्री
गमन बुरा। वरंभिक्षाशित्वं न च परधनास्वादनसुखम् । | भीख माँग कर खाना अच्छा, पराये धन के
भोग का सुख बुरा। वरं मौनं कार्य न च वचनमुक्तं यदनृतम् । | झूठ बोलने की अपेक्षा चुप रहना अच्छा। वर्तमानेन कालेन वर्तयन्ति विचक्षणाः । बुद्धिमान् वर्तमान काल के अनुसार व्यवहार
करते हैं। वस्त्रपूतं पिबेजलम् ।
वस्त्र से छानकर ही जल पीना चाहिए। वस्त्राणामातपो जरा।
धूप वस्त्रों का बुढ़ापा है। वामे विधौ न हि फलन्त्यभिवान्छितानि । | भाग्य विपरीत हो तो अभीष्ट सिद्ध नहीं होते। वासः प्रधानं खलु योग्यतायाः।
योग्यता से भी परिधान प्रधान होता है। वासोविहीनं विजहाति लक्ष्मीः । वस्त्रविहीन को लक्ष्मी छोड़ जाती है। विकारहेतौ सति विक्रियन्ते
विकारक वस्तुओं को विद्यमानता में भी जिनके येषां न चेतांसि त एव धीराः। (कुमार०) चित्त विकृत नहीं होते, वे ही धीर हैं। विक्रीते करिणि किमङ्कशे विवादः? हाथी के बेच देने पर अंकुश के बारे में
विवाद कैसा? विचित्ररूपाः खलु चित्तवृत्तयः। (किरात०) । चित्त की वृत्तियों के रूप विचित्र होते हैं ।
For Private And Personal Use Only