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नृत्य : सर्वत्र तुल्यता । मेघो गिरिजलधिवर्षी च ।
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मौत के सामने सब समान हैं ।
मेव पर्वत और सागर दोनों स्थानों पर
बरसता है ।
मोहान्धमविवेकं हि श्रीश्चिराय न सेवते । मोहग्रस्त और विवेकहीन के पास लक्ष्मी अधिक ( कथा० )
मौनं विधेयं सततं सुधीभिः । मौनं सर्वार्थसाधकम् । मौनिनः कलहो नास्ति । यतः सत्यं ततो धर्मः । यतो धर्मस्ततो धनम् । यतो रूपं ततः शीलम् । यत्ने कृते यदि न सिध्यति कोऽत्र दोषः ?
[ ६५ ]
यत्र विद्वज्जनो नास्ति श्लाघ्यस्तत्राल्पधीरपि ।
यथा देशस्तथा भाषा ।
यथा बीजं तथाङ्कुरः । यथा भूमिस्तथा तोयम् ।
यत्राकृतिस्तत्र गुणा वसन्ति । यत्रास्ति लक्ष्मीर्विनयो न तत्र । यथा चित्तं तथा वाचो यथा वाचस्तथा क्रिया |
यथा राजा तथा प्रजा । यथा वृक्षस्तथा फलम् । यथाशक्य तिथेः ः पूजा धर्मो हि गृहमेधि
नाम् । (कथा० )
यथौषधं स्वादु हितं च दुर्लभम् । यदि वात्यन्तसुता न कस्य परिभूतये ? ( कथा० ) यदेव रोचते यस्मै भवेत्तत्तस्य सुन्दरम् ।
यात्रा निजभालपट्टलिखितं तन्मार्जितुं कः क्षमः ?
यद्यपि शुद्धं लोकविरुद्धं नो करणीयं नाचरणीयम् । यद्वा तद्वा भविष्यति । यशः पुण्यैरवाप्यते ।
यशस्तु रक्ष्यं परतो यशोधनैः । (रघु० )
यः क्रियावान् स पण्डितः । याचनान्तं हि गौरवम् ।
याच्या मोघा वरमविगुणे नाधमे लब्धकामा । (मेघ० )
नहीं ठहरती ।
बुद्धिमानों को निरन्तर चुप रहना चाहिए | मौन से सब काम सिद्ध होते हैं । मौनी का किसी से कलह नहीं होता । जहाँ सत्य है वहाँ धर्म है ।
जहाँ धर्म है वहाँ धन है ।
जहाँ रूप है वहाँ शील है ।
यदि यत्न करने पर भी सिद्धि न हो तो इसमें यत्नकर्ता का क्या दोष ?
जहाँ विद्वान् नहीं होता वहाँ अल्पबुद्धि भी
श्लाघ्य होता है ।
जहाँ रूप तहाँ गुण भी है ।
जहाँ लक्ष्मी होती है वहाँ नम्रता नहीं । जैसा मन वैसी वाणी, जैसी वाणी वैसी क्रिया ।
जैसा देश वैसी भाषा ।
जैसा बीज वैसा अङ्कुर |
जैसी भूमि वैसा जल |
जैसा राजा वैसी प्रजा ।
जैसा वृक्ष वैसा फल |
अतिथि की यथाशक्ति सेवा करना गृहस्थों का
धर्म है।
जैसे स्वादिष्ट और गुणकारी दवा दुर्लभ है । अत्यधिक कोमलता से किसका निरादर नहीं
होता ?
जो जिसे अच्छा लगता है, वही उसके लिये सुन्दर होता है ।
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विधाता ने भाग्य में जो लिख दिया है, उसे कौन मिटा सकता है ? लोकविरुद्ध शुद्ध बात भी न करनी चाहिये ।
कुछ न कुछ तो होगा ही । यश पुण्यों से ही मिलता है ।
यशस्वियों को शत्रु से यश की रक्षा करनी चाहिए ।
जिसके कर्म अच्छे, वही पण्डित है । याचना गौरव को समाप्त कर देती हैं । नीच से याचना के सफल होने की अपेक्षा गुणी से उसका विफल होना अच्छा ।
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