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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra नृत्य : सर्वत्र तुल्यता । मेघो गिरिजलधिवर्षी च । www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मौत के सामने सब समान हैं । मेव पर्वत और सागर दोनों स्थानों पर बरसता है । मोहान्धमविवेकं हि श्रीश्चिराय न सेवते । मोहग्रस्त और विवेकहीन के पास लक्ष्मी अधिक ( कथा० ) मौनं विधेयं सततं सुधीभिः । मौनं सर्वार्थसाधकम् । मौनिनः कलहो नास्ति । यतः सत्यं ततो धर्मः । यतो धर्मस्ततो धनम् । यतो रूपं ततः शीलम् । यत्ने कृते यदि न सिध्यति कोऽत्र दोषः ? [ ६५ ] यत्र विद्वज्जनो नास्ति श्लाघ्यस्तत्राल्पधीरपि । यथा देशस्तथा भाषा । यथा बीजं तथाङ्कुरः । यथा भूमिस्तथा तोयम् । यत्राकृतिस्तत्र गुणा वसन्ति । यत्रास्ति लक्ष्मीर्विनयो न तत्र । यथा चित्तं तथा वाचो यथा वाचस्तथा क्रिया | यथा राजा तथा प्रजा । यथा वृक्षस्तथा फलम् । यथाशक्य तिथेः ः पूजा धर्मो हि गृहमेधि नाम् । (कथा० ) यथौषधं स्वादु हितं च दुर्लभम् । यदि वात्यन्तसुता न कस्य परिभूतये ? ( कथा० ) यदेव रोचते यस्मै भवेत्तत्तस्य सुन्दरम् । यात्रा निजभालपट्टलिखितं तन्मार्जितुं कः क्षमः ? यद्यपि शुद्धं लोकविरुद्धं नो करणीयं नाचरणीयम् । यद्वा तद्वा भविष्यति । यशः पुण्यैरवाप्यते । यशस्तु रक्ष्यं परतो यशोधनैः । (रघु० ) यः क्रियावान् स पण्डितः । याचनान्तं हि गौरवम् । याच्या मोघा वरमविगुणे नाधमे लब्धकामा । (मेघ० ) नहीं ठहरती । बुद्धिमानों को निरन्तर चुप रहना चाहिए | मौन से सब काम सिद्ध होते हैं । मौनी का किसी से कलह नहीं होता । जहाँ सत्य है वहाँ धर्म है । जहाँ धर्म है वहाँ धन है । जहाँ रूप है वहाँ शील है । यदि यत्न करने पर भी सिद्धि न हो तो इसमें यत्नकर्ता का क्या दोष ? जहाँ विद्वान् नहीं होता वहाँ अल्पबुद्धि भी श्लाघ्य होता है । जहाँ रूप तहाँ गुण भी है । जहाँ लक्ष्मी होती है वहाँ नम्रता नहीं । जैसा मन वैसी वाणी, जैसी वाणी वैसी क्रिया । जैसा देश वैसी भाषा । जैसा बीज वैसा अङ्कुर | जैसी भूमि वैसा जल | जैसा राजा वैसी प्रजा । जैसा वृक्ष वैसा फल | अतिथि की यथाशक्ति सेवा करना गृहस्थों का धर्म है। जैसे स्वादिष्ट और गुणकारी दवा दुर्लभ है । अत्यधिक कोमलता से किसका निरादर नहीं होता ? जो जिसे अच्छा लगता है, वही उसके लिये सुन्दर होता है । | विधाता ने भाग्य में जो लिख दिया है, उसे कौन मिटा सकता है ? लोकविरुद्ध शुद्ध बात भी न करनी चाहिये । कुछ न कुछ तो होगा ही । यश पुण्यों से ही मिलता है । यशस्वियों को शत्रु से यश की रक्षा करनी चाहिए । जिसके कर्म अच्छे, वही पण्डित है । याचना गौरव को समाप्त कर देती हैं । नीच से याचना के सफल होने की अपेक्षा गुणी से उसका विफल होना अच्छा । For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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