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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [६६४] - भीता इव हि धीराणां दूरे यान्ति विपत्तयः। विपत्तियाँ मानो धीरों से डरकर ही दूर भाग ( कथा०) जाती हैं। भूयोऽपि सिक्तः पयसा घृतेन । दूध और घी से निरन्तर मीचा जाने पर भी न निम्बवृक्षो मधुरत्वमेति । नाम का वृक्ष मधुर नहीं होता। भोगो भूषयते धनम्। भोग धन को अलंकृत करता है। भ्रष्टस्य का वा गतिः? पतित की क्या गति होती होगी? मतिरेव बलाद् गरीयसी। बल से बुद्धि ही बड़ी है। मदमूढबुद्धिषु विवेकिता कुतः ? ( शिशु०) । मद से मूढ़ बुद्धिवालों में विवेक कहाँ ? मद्यपस्य कुतः सत्यम् ? ( कथा०) शराबी में सत्य कहाँ ? मधुरविधुरमिश्राः सृष्टयो हा विधातुः। | विधाता की रचनाएँ मुखपूर्ण, दुःखपूर्ण तथा (प्रसन्नराघवे) मिली-जुली है। मनःपूतं समाचरेत् । आचरण ऐसा करे जिसकी पवित्रता का मन साक्षी हो। मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः। मन ही मनुष्यों के बंधन और मुक्ति का कारण है। मनस्येकं वचस्येकं कर्मण्येकं महात्मनाम् । महात्माओं के मन, वचन और कर्म में एक रूपता होती है। मनस्वी कार्यार्थी न गणयति दुःखं न च मनरवी कार्यकर्ता दुःख सुख की चिन्ता नहीं सुखम् । किया करता। मनोरथानामगतिर्न विद्यते । ( कुमार०) मनोरथ सर्वत्र पहुँच जाते हैं। मरणं प्रकृतिः शरीरिणाम् । मृत्यु प्राणियों का स्वभाव है । मर्दनं गुणवर्धनम् । मालिश गुणवर्द्धक है। मर्मवाक्यमपि नोच्चरणीयम् । दुःखदायक बात न कहनी चाहिए। महाजनो येन गतः सः पन्थाः। जिस मार्ग से कोई महापुरुष गया हो वहीं सुमार्ग है। महान् महत्येव करोति विक्रमम् । बड़ा मनुष्य बड़े पर ही पराक्रम दिखाता है। महीपतीनां विनयो हि भूषणम् । नम्रता राजाओं का भूषण है। मातर्लक्ष्मि, तव प्रसादवशतो दोषा अपि | हे लक्ष्मी माता, आपकी कृपा से दोष भी गुण स्युगुणाः। __हो जाते हैं। माता दुश्वारिणी रिपुः। दुश्चरित्र। माता शत्रु है। मातापितृभ्यां शप्तः सन् न जातु सुखम- माता-पिता से शापित जन कभी सुख नहीं श्नुते। (कथा०) पाता। मातृजङ्घा हि वत्सस्य स्तम्भीभवति बन्धने। बछड़े को बाँधने के लिए माता की टाँग ही स्तम्भ बन जाती है। मात्रा समं नास्ति शरीरपोषणम् । माता के समान शरीर का पोषक कोई नहीं। माने म्लाने कुतः सुखम् ? सम्मान दृषित होने पर सुख कहाँ ? मितं च सारं च वचो हि वाग्मिता । महत्त्वपूर्ण बात थोड़े शब्दों में कहना ही ___ वाग्मिता है। मूढः परप्रत्ययनेयबुद्धिः। मृढ़ दूसरे के विश्वास का अनुसरण करता है। मुर्खस्य किं शास्त्रकथाप्रसंगः? मूर्ख का शास्त्रों की कथाओं से क्या सम्बन्ध ? मूर्खस्य हृदयं शून्यम्। मूर्ख का हृदय विचाररहित होता है। मूर्खाणां बोधको रिपुः। मूर्ख लोग समझानेवाले को शत्रु समझते हैं। मूखैर्हि संगः कस्यास्ति शर्मणे? ( कथा०) मूर्ख-सङ्गति किसे सुख देती है ? For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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