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[ ६६३ ]
बहुवचनमपसारं यः कथयति विप्र | जो अल्प-सार को बहुत शब्दों से कहता है,
वही विप्रलापी है।
लापी सः ।
बहुविघ्नास्तु सदा कल्याण सिद्धयः । ( कथा० ) बह्वा हि मेदिनी । बालानां रोदनं बलम् ।
बुद्धयः कुब्जगामिन्यो भवन्ति महतामपि । बड़ों की बुद्धि भी कुमार्गगामिनी हो जाती है । बुद्धिः कर्मानुसारिणी । बुद्धि कर्मों के अनुसार होती है । बुद्धिर्नाम च सर्वत्र मुख्यं मित्रं न पौरुषम् || सब स्थानों पर बुद्धि ही मुख्य मित्र है, पुरु( कथा० )
षार्थ नहीं ।
बुद्धेः फलमनाग्रहः । भुक्षितः किं न करोति पापम् ? बुभुक्षितं न प्रतिभाति किंचित् । बुभुक्षितैव्याकरणं न भुज्यते ।
ते हि फलेन साधवो न तु कण्ठेन निजोपयोगिताम् । ( नैषध० )
भक्त्या हि तुष्यन्ति महानुभावाः ।
भद्रकृत्प्राप्नुयाद्भद्रमभद्रं चाप्यभद्रकृत् । ( कथा० )
भये सीमा शुत्युः । भर्तृमार्गानुसरणं स्त्रीणां च परमं व्रतम् ।
भवन्तिक्लेशबहुलाः सर्वस्यापीह सिद्धयः । ( कथा० ) भवन्त्युदयकाले हि सरकल्याणपरम्पराः । ( कथा० ) भवितव्यता बलवती | ( अभिज्ञान० ) भवितव्यं भवत्येव कर्मणामीदृशी गतिः ।
भवेन्न यस्य यत्कर्म स तत्कुर्वन् विनश्यति । ( कथा० )
कल्याणों की सिद्धि में सदा अनेक विघ्न पड़ते हैं । पृथ्वी आश्चर्यों से पूर्ण है ।
रोना ही बच्चों का बल है ।
भस्मीभूतस्य भूतस्य पुनरागमनं कुतः ? ( नैपध० ) भाग्येनैव हि लभ्यते पुनरसौ सर्वोत्तमः सेवकः ।
भार्यासमं नास्ति शरीरतोषणम् ।
हठ का न होना ही बुद्धि का फल है । भूखा मनुष्य कौन-सा पाप नहीं करता ? भूखे को कुछ नहीं सूझता ।
भूखे लोग व्याकरण नहीं खाया करते । |श्रेष्ठ लोग अपनी उपयोगिता बाणी से नहीं, फल से कहते हैं ।
महानुभाव लोग भक्ति ( श्रद्धा ) से ही प्रसन्न
होते हैं।
भले का भला और बुरे का बुरा होता है ।
सबसे बड़ा भय मृत्यु है ।
पति- निर्दिष्ट मार्ग पर चलना स्त्रियों का परम व्रत है।
संसार में सबके कार्य अनेक कष्ट उठाने पर ही सिद्ध होते हैं ।
जब अच्छे दिन आते हैं तब सभी काम शुभ होते जाते हैं । होनहार बलवती है ।
कर्मों की गति ऐसी है कि होनी होकर ही रहती है ।
१. जिसका काम उसी को साजे, और करे तो डफली बाजे |
२. जो काम जिसका न हो, उसे करने पर मनुष्य नष्ट हो जाता है । भस्मीभूत प्राणी लौटकर कैसे आ सकता है ?
सर्वोत्तम सेवक भाग्य से ही प्राप्त होता है ।
पत्नी के समान शारीरिक सुख देनेवाला कोई नहीं ।
भिक्षुको भिक्षुकं दृष्ट्वा श्वानवद् गुगुरायते । भिखारी, भिखारी को देखकर कुत्ते के समान
भिन्नरुचिर्हि लोकः ।
गुर्राता है ।
लोगों की रुचि भिन्न-भिन्न है ।
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