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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ६६३ ] बहुवचनमपसारं यः कथयति विप्र | जो अल्प-सार को बहुत शब्दों से कहता है, वही विप्रलापी है। लापी सः । बहुविघ्नास्तु सदा कल्याण सिद्धयः । ( कथा० ) बह्वा हि मेदिनी । बालानां रोदनं बलम् । बुद्धयः कुब्जगामिन्यो भवन्ति महतामपि । बड़ों की बुद्धि भी कुमार्गगामिनी हो जाती है । बुद्धिः कर्मानुसारिणी । बुद्धि कर्मों के अनुसार होती है । बुद्धिर्नाम च सर्वत्र मुख्यं मित्रं न पौरुषम् || सब स्थानों पर बुद्धि ही मुख्य मित्र है, पुरु( कथा० ) षार्थ नहीं । बुद्धेः फलमनाग्रहः । भुक्षितः किं न करोति पापम् ? बुभुक्षितं न प्रतिभाति किंचित् । बुभुक्षितैव्याकरणं न भुज्यते । ते हि फलेन साधवो न तु कण्ठेन निजोपयोगिताम् । ( नैषध० ) भक्त्या हि तुष्यन्ति महानुभावाः । भद्रकृत्प्राप्नुयाद्भद्रमभद्रं चाप्यभद्रकृत् । ( कथा० ) भये सीमा शुत्युः । भर्तृमार्गानुसरणं स्त्रीणां च परमं व्रतम् । भवन्तिक्लेशबहुलाः सर्वस्यापीह सिद्धयः । ( कथा० ) भवन्त्युदयकाले हि सरकल्याणपरम्पराः । ( कथा० ) भवितव्यता बलवती | ( अभिज्ञान० ) भवितव्यं भवत्येव कर्मणामीदृशी गतिः । भवेन्न यस्य यत्कर्म स तत्कुर्वन् विनश्यति । ( कथा० ) कल्याणों की सिद्धि में सदा अनेक विघ्न पड़ते हैं । पृथ्वी आश्चर्यों से पूर्ण है । रोना ही बच्चों का बल है । भस्मीभूतस्य भूतस्य पुनरागमनं कुतः ? ( नैपध० ) भाग्येनैव हि लभ्यते पुनरसौ सर्वोत्तमः सेवकः । भार्यासमं नास्ति शरीरतोषणम् । हठ का न होना ही बुद्धि का फल है । भूखा मनुष्य कौन-सा पाप नहीं करता ? भूखे को कुछ नहीं सूझता । भूखे लोग व्याकरण नहीं खाया करते । |श्रेष्ठ लोग अपनी उपयोगिता बाणी से नहीं, फल से कहते हैं । महानुभाव लोग भक्ति ( श्रद्धा ) से ही प्रसन्न होते हैं। भले का भला और बुरे का बुरा होता है । सबसे बड़ा भय मृत्यु है । पति- निर्दिष्ट मार्ग पर चलना स्त्रियों का परम व्रत है। संसार में सबके कार्य अनेक कष्ट उठाने पर ही सिद्ध होते हैं । जब अच्छे दिन आते हैं तब सभी काम शुभ होते जाते हैं । होनहार बलवती है । कर्मों की गति ऐसी है कि होनी होकर ही रहती है । १. जिसका काम उसी को साजे, और करे तो डफली बाजे | २. जो काम जिसका न हो, उसे करने पर मनुष्य नष्ट हो जाता है । भस्मीभूत प्राणी लौटकर कैसे आ सकता है ? सर्वोत्तम सेवक भाग्य से ही प्राप्त होता है । पत्नी के समान शारीरिक सुख देनेवाला कोई नहीं । भिक्षुको भिक्षुकं दृष्ट्वा श्वानवद् गुगुरायते । भिखारी, भिखारी को देखकर कुत्ते के समान भिन्नरुचिर्हि लोकः । गुर्राता है । लोगों की रुचि भिन्न-भिन्न है । For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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