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[६६२]
प्रायः समानविद्याः परस्परयशः पुरोभागाः।। प्रायः समान विद्यावाले लोग एक दूसरे के
यश को सह नहीं सकते। प्रायः समासनविपत्तिकाले
जब अपत्ति आने को होती है तब मनुष्यों की धियोऽपि पुंसां मलिनीभवन्ति ।
बुद्धि प्रायः मलिन हो जाती है। प्रायः स्त्रियो भवन्तीह निसर्गविषमाः स्त्रियाँ स्वभाव से ही प्रायः कठोर और शठ शठाः । (कथा)
हुआ करती हैं। प्रायः स्वं महिमानं क्रोधात्प्रतिपद्यते हि क्रोध आने पर ही प्रायः मनुष्य अपने महत्त्व
___ को प्राप्त करता है। प्रायेण गृहिणीनेत्राः कन्यार्थेषु कुटुम्बिनः। | कुटुम्बी पुरुष कन्याओं के मामलों में प्रायः
(कुमारसंभवे) गृहिणी के ही मतानुसार चलते हैं। प्रायेण भार्यादौःशील्यं स्नेहान्धो नेक्षते | प्रेमान्ध पुरुष पत्नी की दुःशीलता की प्रायः जनः । (कथा)
उपेक्षा कर जाता है। प्रायेण भूमिपतयः प्रमदा लताश्च | राजा, स्त्रियाँ और लताएँ जो भी पास हो प्राय: __ यः पार्श्वतो भवति तं परिवेष्टयन्ति । । उसीसे लिपट जाती हैं। प्रायेण साधुवृत्तानामस्थायिन्यो विपत्तयः। सदाचारियों की विपत्तियाँ प्रायः अस्थायी
होती हैं। प्रायेण सामग्र्यविधौ गुणानां विधाता प्रायः सभी गुणों को एकत्र नहीं रखता।।
पराङ्मुखी विश्वसृजः प्रवृत्तिः । (कुमार०) प्रायेणाधममध्यमोत्तमगुणः संसर्गतोजायते। अधम, मध्यम और उत्तम गुण प्रायः संसर्ग
से ही आता है। प्रायो गच्छति यत्र भाग्यरहितस्तत्रैव | भाग्यहीन मनुष्य जहाँ जाता है, प्रायः वहीं यान्त्यापदः।
आपत्तियाँ भी जा पहुँचती हैं। प्रारभ्य चोत्तमजना न परित्यजन्ति । । | श्रेष्ठ लोग कार्य आरंभ करके बीच में नहीं छोड़ते। प्रासादशिखरस्थोऽपि काकः किंगरुडायते ? | महल की चोटी पर बैठा हुआ कौआ क्या
___गरुड़ बन जाता है ? प्रियबन्धविनाशोत्थः शोकाग्निः कं न प्रिय बन्धु की मृत्यु का शोक किसे संतप्त नहीं तापयेत् ? (कथा)
करता? प्रियमांसमृगाधिपोज्झितः किमवद्यः करि. मांसभक्षक सिंह से त्यक्त, हाथी के मस्तक से. कुम्भजो मणिः ? (शिशु०)
निकला हुआ रत्न क्या निन्ध होता है ? प्रियानाशे कृत्स्नं किल जगदरण्यं हि कान्ता की मृत्यु पर सारा संसार कान्तार ही भवति ।
बन जाता है। फलं भाग्यानुसारतः।
फल भाग्य के अनुसार होता है। बताश्रितानुरोधेन किं न कुर्वन्ति साधवः ? | आश्रितों के आग्रह पर सज्जन क्या नहीं करते।
(कथा० ) बधिरस्य गानम् ।
बहिरे के सामने गाना। बधिरान्मन्दकर्णः श्रेयान् ।
बहिरे की अपेक्षा ऊँचा सुननेवाला अच्छा। बन्धुः को नाम दुष्टानाम् ?
दुष्टों का बन्धु कौन ? बन्धुरप्यहितः परः।
अहितकर बन्धु भी शत्रु है। बलं मूर्खस्य मौनित्वम् ।
मौन मूर्ख का बल है। बली बलं वेत्ति न वेत्ति निर्बलः । बलवान् ही बल को जानता है, निर्बल नहीं । बलीयसी केवलमीश्वरेच्छा।
ईश्वर की इच्छा ही बलवती है । बहुरत्ना वसुन्धरा ।
पृथ्वी में बहुत रत्न हैं।
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