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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra [ ६६१ ] पाणौ पयसा दग्धे तक्रं फूत्कृत्य पामरः । दूध का जला छाछ को फूंक-फूंक कर पीता है । पिबति । पात्रत्वाद् धनमाप्नोति । पापप्रभावान्नरकं प्रयाति । पितृदोषेण मूर्खता । पिपासितैः काव्यरसो न पीयते । पीत्वा मोहमय प्रसादमदिराम् उन्मत्तभूतं जगत् । मनुष्य योग्य होने पर धन प्राप्त करता है । पाप के प्रभाव से नरक को जाता है । मूर्खता पिता के दोष से होती हैं । प्यासे काव्यरस नहीं पिया करते । मोहमयी प्रमाद- मदिरा पीकर जगत् उन्मत्त हो गया है। पुण्यवन्तो हि सन्तानं पश्यन्त्युच्चैः कृता- वंश को ऊँचा करनेवाली सन्तान पुण्यवानों के घर ही होती है । मूर्ख पुत्रशत्रु है । वयम् । (कथा० ) पुत्रः शत्रुरपण्डितः । www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुत्रप्रयोजना द्वाराः । पुत्रहीनं गृहं शून्यम् । पत्नी पुत्र को जन्म देने के लिए ही होती है । पुत्रहीन घर सूना है । पुत्रादपि भयं यत्र तत्र सौख्यं हि कीदृशम् ? जहाँ पुत्र से भी भय हो वहाँ सुख कैसा ? पुनर्दरिद्री पुनरेव पापी । पुनर्धनाढ्यः पुनरेव भोगी । पुरुषा अपि बाणा अपि गुणच्युता कस्य न भयाय ? पूज्यं वाक्यं सस्य । पूर्वपुण्यतया विद्या । प्रच्छन्नमप्यूहयते हि चेष्टा । ( किरात० ) प्रजानामपि दीनानां राजैव सद्यः पिता । प्रज्ञाबलं च सर्वेषु मुख्य कार्येषु साधनम् । ( कथा० ) फिर दरिद्री, फिर पापी । फिर धनी, फिर भोगी । प्राणैरपि हि भृत्यानां स्वामिसंरक्षणं व्रतम् । ( कथा० ) प्राप्नोतीष्टमविक्लवः । ( कथा० ) प्राप्यते किं यशः शुभ्र मनङ्गीकृत्य साहसम् ? ( कथा० ) प्रायः श्वश्रूस्नुपयोर्न दृश्यते सौहृदं लोके । पुरुष भी और बाण भी गुण ( गुण, धनुष की डोरी) से रहित हो जाने पर किसके लिए भयंकर नहीं होते ? धनाढ्य का वाक्य पूज्य होता है । विद्या पिछले पुण्यों से मिलती है। चेष्टा गुप्त बात को भी व्यक्त कर देती है । राजा दीन प्रजाओं का दयालु पिता है । सब कार्यों में बुद्धिबल सबसे बड़ा साधन है । प्रणामातः सतां कोपः । सज्जनों का क्रोध प्रणाम से समाप्त हो जाता है । प्रतिबध्नाति हि श्रेयः पूज्यपूजाव्यतिक्रमः । पूज्यों की पूजा में उलट-फेर कल्याणों का बाधक ( रघुवंश ० ) होता है । प्राणव्ययाय शूराणां जायते हि रणोत्सवः । ( कथा० ) प्राणिनां हि निकृष्टापि जन्मभूमिः परा प्रिया । ( कथा० ) प्राणेभ्योऽप्यर्थमात्रा हि कृपणस्य गरी कंजूस को थोड़ा-सा भी धन प्राणों से अधिक युद्ध का मेला शूरवीरों के प्राणधन के व्ययार्थ होता है । प्राणियों को अपनी निकृष्ट जन्मभूमि भी अत्यन्त प्यारी लगती है । यसी । (कथा० ) प्यारा लगता है । प्राण देकर भी स्वामी की रक्षा करना सेवकों व्रत है। धीर अभीष्ट को पा लेता है । जान जोखिम में डाले बिना कहीं शुभ्र यश प्राप्त हो सकता है ? संसार में प्राय: सास-बहू में सौहार्द नहीं देखा जाता । For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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