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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नीचो वदति, न कुरुते, वदति न साधुः करोत्येव । नैकत्र सर्वो गुणसंनिपातः । न्याय्यां वृत्ति समाचरेत् । न्याय्यात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः । पठतो नास्ति मूर्खत्वम् । पदं हि सर्वत्र गुणैर्निधीयते । पदं सहेत भ्रमरस्य पेलवं [ ६६० ] पो हि नभसि क्षिप्तः क्षेप्तुः पतति मूर्धनि । ( कथा० ) पञ्चभिर्मिलितैः किं यज्जगतीह न साध्यते । ( नैषध० ) शिरीषपुष्पं, न पुनः पतत्रिणः । (कुमार ०) पद्मपत्रस्थितं वारिधत्ते मुक्ताफलश्रियम् । परोऽपि हितवान् बन्धुः । पर्वतानां भयं वज्रात् । परेङ्गितज्ञानफला हि बुद्धयः । परोपकारजं पुण्यं न स्यात्क्रतुशतैरपि । परोपकाराय सतां विभूतयः । परोपकारार्थमिदं शरीरम् । परोपदेश वेलायां शिष्टाः सर्वे भवन्ति वै । नीच मनुष्य कहता है, करता नहीं। सज्जन कहता नहीं, कर देता है । सभी गुण एकत्र नहीं रहते । जीवकोपार्जन न्याय के अनुसार करना चाहिए। धीर लोग न्याय के मार्ग से तनिक भी विचलित नहीं होते । आकाश में फेंका हुआ कीचड़ फेंकनेवाले के सिर पर ही पड़ता है । पयःपानं भुजंगानां केवलं विषवर्धनम् । पयोगते किं खलु सेतुबंध: ? परदुःखेनापि दुःखिता विरलाः । परबुद्धिर्विनाशाय । दूसरों के मतानुसार आचरण विनाशकारी होता है। | क्या भँवरा दूसरे से मुक्त कमल से प्रेम करता है ? परभुक्ते हि कमले किमलेर्जायते रतिः ? ( कथा० ) परमं लाभमरातिभङ्गमाहुः । ( किरात० ) परलोकगतस्य को बन्धुः ? परवृद्धिमत्सरि मनो हि मानिनाम् । (शिशु० ) परसदननिविष्टः को लघुत्वं न याति ? परहितनिरतानामादरो नात्मकायें । संसार में ऐसा कौन-सा काम है जिसे पाँच मनुष्य मिलकर नहीं कर सकते ? अध्ययनशील मनुष्य मूर्ख नहीं रहता । गुण सर्वत्र अपना स्थान बना लेते हैं । शिरीष का फूल भ्रमर के कोमल चरण को तो सह लेता है, पक्षी के चरण को नहीं । कमल-पत्र पर पड़ा हुआ जल मोती की शोभा धारण कर लेता है । साँपों को दूध पिलाने से उनका विष हो बढ़ता है। बाढ़ के उतर जाने पर बाँध बाँधने से क्या लाभ ? दूसरों के दुःख से दुःखित होनेवाले लोग थोड़े ही हैं। शत्रु का नाश सब से बड़ा लाभ कहा जाता है । दिवंगत व्यक्ति का बन्धु कौन है ? मानी मनुष्यों का मन दूसरों की उन्नति से ईर्ष्या करता है । दूसरे के घर जाने से किसका गौरव क्षीण नहीं होता ? परोपकारपरायण लोग अपने कार्यों की परवाह नहीं करते । बुद्धियाँ वही हैं जो दूसरों के सङ्केत समझ जाती हैं। परोपकार-जन्य पुण्य सैकड़ों यशों के पुण्य से श्रेष्ठ है। सज्जनों को सम्पत्तियाँ परोपकार के लिए होती हैं। यह शरीर परोपकार के लिए है । दूसरों को उपदेश देते समय तो सब सभ्य बन जाते हैं । हितकारक बेगाना भी बन्धु ही है । पर्वतों को वज्र से भय होता है 1 For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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