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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्मक्षयकरः क्रोधः । धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम् । धर्मः कीर्तिर्द्वयं स्थिरम् । धर्मः स नो यत्र न सत्यमस्ति । 'धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः । धिक् कलत्रमपुत्रकम् । धिक् पुत्रमविनीतं च । धिगाशा सर्वदोषभूः । धिगृहं गृहिणीशून्यम् । 'धिग्जीवितं चोद्यमवर्जितस्य । "धिग्जीवितं व्यर्थमनोरथस्य । 'धिग्जीवितं शास्त्रकलोज्झितस्य । [ ६८७ ] धनं सर्वप्रयोजनम् । धन सर्वप्रमुख प्रयोजन है । धनानि जीवितं चैव परार्थे प्राज्ञ उत्सृजेत् । बुद्धिमान मानव परोपकार के लिए धन और जीवन त्याग दे । क्रोध धर्म का नाशक है । धर्म का तत्त्व गुफा में छिपा है । 1 धर्म और कीर्ति ही दो स्थिर पदार्थ हैं। । जिसमें सत्य नहीं, वह धर्म नहीं । धर्महीन जन पशुतुल्य हैं । अपुत्र नारी धिक्कार्य है। धूर्ताः क्रीडन्ति बालिशैः । ( कथा० ) फलाय महते महतां सह संगमः । (कथा०) न काचस्य कृते जातु युक्ता मुक्तामणेः क्षतिः । ( कथा० ) न कामसदृशो रिपुः । न कूपखननं युक्तं प्रदीप्ते वह्निना गृहे । न खलु स उपरतो यस्य वल्लभो जनः स्मरति । न चापत्यसमः स्नेहः । न जाने संसारः किमस्सृतमयः किं विषमयः । न ज्ञानात् परमं चक्षुः । न तोषात् परमं सुखम् । न तोषो महतां भुषा । ( कथा० ) न दरिद्रस्तथा दुःखी लब्धक्षोणधनो ! यथा । अनम्र पुत्र धिक्कार्य है । I सब दोषों की जननी आशा धिक्कार्यं है । गृहिणीहत घर धिक्कार्य है । उद्यमहीन का जीवन धिक्कार्य है। विफल- मनोरथ मनुष्य का जीवन धिक्कार्य है । शास्त्र तथा कला से रहित मानव का जीवन धिक्कार्य है । 1 धूर्त लोग मूर्खों को ही उल्लू बनाते हैं। बड़ों की संगति का फल बड़ा होता है । काँच की प्राप्ति के लिए मोती की हानि उचित नहीं । न च धर्मो दयापरः । दया से बड़ा कोई धर्म नहीं । न चलति खलु वाक्यं सजनानां कदाचित् । सज्जनों की बात कभी झूठी नहीं होती । न च विद्यासमो बन्धुः । विद्या के समान बन्धु नहीं । न च व्याधिसमो रिपुः । न धर्मवृद्धेषु वयः समीक्ष्यते । ( कुमार० ) न धर्मसदृशं मित्रम् | न नश्यति तमो नाम कृतया दीपवार्तया । agarasपि निष्का गिरयः । ( अभि० ) ननु वक्तृविशेषनिःस्पृहा गुणगृह्या वचने विपश्चितः । ( किरात ० ) न पुत्रात् परमो लाभः । | " काम के समान शत्रु नहीं । घर में आग लगने पर कुआँ खोदना उचित नहीं । जिसका स्मरण प्रियजन करते हैं, उसे मरा न समझिए । रोग के तुल्य शत्रु नहीं । सन्तति के प्रति प्रेम अप्रतिम है । न जाने यह जगत् अमृतमय है या विषमय । ज्ञान से बड़ी आँख नहीं । संतोष से बड़ा सुख नहीं । बड़े लोगों की प्रसन्नता व्यर्थ नहीं होती । निर्धन उतना दुःखी नहीं होता जितना धन को पाकर खोनेवाला । धर्म-वृद्धों की उमर नहीं देखी जाती । धर्म के समान मित्र नहीं । दीपक की बात करने से अँधेरा नष्ट नहीं होता । आँधी से पर्वत कभी नहीं हिलते । गुणग्राही लोग बात का गुण ग्रहण करते हैं, वक्ता विशेष का ध्यान नहीं करते । पुत्र-प्राप्ति से बड़ा कोई लाभ नहीं । For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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