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धर्मक्षयकरः क्रोधः ।
धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम् । धर्मः कीर्तिर्द्वयं स्थिरम् । धर्मः स नो यत्र न सत्यमस्ति । 'धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः । धिक् कलत्रमपुत्रकम् । धिक् पुत्रमविनीतं च । धिगाशा सर्वदोषभूः । धिगृहं गृहिणीशून्यम् । 'धिग्जीवितं चोद्यमवर्जितस्य । "धिग्जीवितं व्यर्थमनोरथस्य । 'धिग्जीवितं शास्त्रकलोज्झितस्य ।
[ ६८७ ]
धनं सर्वप्रयोजनम् ।
धन सर्वप्रमुख प्रयोजन है ।
धनानि जीवितं चैव परार्थे प्राज्ञ उत्सृजेत् । बुद्धिमान मानव परोपकार के लिए धन और जीवन त्याग दे । क्रोध धर्म का नाशक है ।
धर्म का तत्त्व गुफा में छिपा है ।
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धर्म और कीर्ति ही दो स्थिर पदार्थ हैं। । जिसमें सत्य नहीं, वह धर्म नहीं । धर्महीन जन पशुतुल्य हैं । अपुत्र नारी धिक्कार्य है।
धूर्ताः क्रीडन्ति बालिशैः । ( कथा० )
फलाय महते महतां सह संगमः । (कथा०) न काचस्य कृते जातु युक्ता मुक्तामणेः क्षतिः । ( कथा० )
न कामसदृशो रिपुः ।
न कूपखननं युक्तं प्रदीप्ते वह्निना गृहे । न खलु स उपरतो यस्य वल्लभो जनः स्मरति ।
न चापत्यसमः स्नेहः ।
न जाने संसारः किमस्सृतमयः किं विषमयः ।
न ज्ञानात् परमं चक्षुः ।
न तोषात् परमं सुखम् । न तोषो महतां भुषा । ( कथा० ) न दरिद्रस्तथा दुःखी लब्धक्षोणधनो ! यथा ।
अनम्र पुत्र धिक्कार्य है ।
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सब दोषों की जननी आशा धिक्कार्यं है । गृहिणीहत घर धिक्कार्य है । उद्यमहीन का जीवन धिक्कार्य है। विफल- मनोरथ मनुष्य का जीवन धिक्कार्य है । शास्त्र तथा कला से रहित मानव का जीवन धिक्कार्य है ।
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धूर्त लोग मूर्खों को ही उल्लू बनाते हैं। बड़ों की संगति का फल बड़ा होता है । काँच की प्राप्ति के लिए मोती की हानि उचित नहीं ।
न च धर्मो दयापरः ।
दया से बड़ा कोई धर्म नहीं ।
न चलति खलु वाक्यं सजनानां कदाचित् । सज्जनों की बात कभी झूठी नहीं होती ।
न च विद्यासमो बन्धुः ।
विद्या के समान बन्धु नहीं ।
न च व्याधिसमो रिपुः ।
न धर्मवृद्धेषु वयः समीक्ष्यते । ( कुमार० ) न धर्मसदृशं मित्रम् |
न नश्यति तमो नाम कृतया दीपवार्तया । agarasपि निष्का गिरयः । ( अभि० ) ननु वक्तृविशेषनिःस्पृहा गुणगृह्या वचने विपश्चितः । ( किरात ० ) न पुत्रात् परमो लाभः ।
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काम के समान शत्रु नहीं ।
घर में आग लगने पर कुआँ खोदना उचित नहीं । जिसका स्मरण प्रियजन करते हैं, उसे मरा न समझिए ।
रोग के तुल्य शत्रु नहीं । सन्तति के प्रति प्रेम अप्रतिम है ।
न जाने यह जगत् अमृतमय है या विषमय । ज्ञान से बड़ी आँख नहीं ।
संतोष से बड़ा सुख नहीं ।
बड़े लोगों की प्रसन्नता व्यर्थ नहीं होती । निर्धन उतना दुःखी नहीं होता जितना धन को पाकर खोनेवाला ।
धर्म-वृद्धों की उमर नहीं देखी जाती । धर्म के समान मित्र नहीं ।
दीपक की बात करने से अँधेरा नष्ट नहीं होता । आँधी से पर्वत कभी नहीं हिलते । गुणग्राही लोग बात का गुण ग्रहण करते हैं, वक्ता विशेष का ध्यान नहीं करते । पुत्र-प्राप्ति से बड़ा कोई लाभ नहीं ।
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