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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [६८६ ] ताम् ? तुष्यन्ति भोजनैर्विप्राः । । ब्राह्मण सुंदर भोजन से प्रसन्न होते हैं। तेजसां हि न वयः समीक्ष्यते । ( रधु०) तेजस्वियों की उमर नहीं देखी जाती। त्यजन्त्युत्तमसत्त्वा हि प्राणानपि न सत्प- उत्तम प्रकृति के लोग प्राण त्याग देते हैं, थम् । (कथा० ) सन्मार्ग नहीं। त्यजेदेकं कुलस्वार्थे । कुटुम्ब की रक्षार्थ एक सम्बन्धी का त्याग कर देना चाहिए। त्यागाजगति पूज्यन्ते पशुपाषाणपादपाः। पशु, पत्थर और पेड़ त्याग के कारण ही संसार में पूजे जाते हैं। त्रिभुवनविषये कस्य दोषो न चास्ति ! तीनों लोकों में कौन निर्दोष है ! त्रैलोक्ये दीपको धर्मः। धर्म तीनों लोकों का दीपक है। दया मांसाशिनः कुतः! मांसभक्षक में दया कहाँ ! दयितं जनः खलु गुणीति मन्यते । (शिशु०) लोग प्रिय मनुष्य को गुणी समझते हैं । दरिद्रता धीरतया विराजते। निर्धनता धैर्य से शोभा पाती है । दर्दुरा यत्र वक्तारस्तत्र मौनं हि शोभनम् । जहाँ मेढक वक्ता हों वहाँ मौन ही अच्छा । दशाननोऽहरत्सीतां बन्धनं च महोदधेः । सीता तो चुराई रावण ने और बाँधा गया समुद्र। दारिद्रयदोषेण करोति पापम् । मनुष्य दरिद्रता के कारण पाप करता है। दारिद्रयदोषो गुणराशिनाशी । दरिद्रता अनेक गुणों की नाशिका है। दारिद्रयं परमाञ्जनम् । ( भागवते ) दरिद्रता सबसे उत्तम सुर्मा है। दुग्धधौतोऽपि किं याति वायसः कलहंस- दूध से धोने पर क्या कौआ हंस बन जाता है ? दुरधीता विषं विद्या। बुरी तरह से पढ़ी हुई विद्या विष है। दुर्जनस्य कुतः क्षमा? में क्षमा कहाँ ? दुर्जनस्यार्जितं वित्तं भुज्यते राजतस्करैः। दुर्जन की कमाई राजा और चोर ने खाई । दुर्जया हि विषया विदुषापि । (नैषध०) विद्वान् भी विषयों को कठिनता से जानता है। दुर्बलस्य बलं राजा। राजा दुर्बल का बल है। दुर्मन्त्री राज्यनाशाय । कुमंत्री से राज्य का नाश होता है। दुर्लभं क्षेमकृत् सुतः। कल्याणकारी पुत्र दुर्लभ है। दुर्लभं भारते जन्म मनुष्यं तत्र दुर्लभम्। | भारत में जन्म दुर्लभ है और फिर मनुष्य-जन्म ___ तो और भी दुर्लभ है। दुर्लभः स गुरुलों के शिष्यचिन्तापहारकः। शिष्यों की चिन्ता का नाशक गुरु जगत् में दुर्लभ है। दुष्टेऽपि पत्यौ साध्वीनां नान्यथावृत्ति पति के दुष्ट होने पर भी सती स्त्रियों का मन मानसम् । (कथा) अन्यत्र नहीं जाता। दूरतः पर्वता रम्याः। दूर के ढोल सुहावने । देवो दुर्बलघातकः। गरीब को खुदा की मार। देहस्नेहो हि दुस्त्यजः। शरीर का प्रेम छोड़ना कठिन है। दैवमेव हि साहाय्यं कुरुते सत्वशालिनाम् । दैव भी पराक्रमी लोगों की ही सहायता (कथा०) करता है। दैवी विचित्रा गतिः। दैव की गति अद्भुत है। दोषग्राही गुणत्यागी पल्लोलीव हि दुर्जनः। दुष्ट मनुष्य छलनी के समान दोषों का ग्रहण ___ करते हैं और गुणों का त्याग । दोषोऽपि गुणतां याति प्रभोर्भवति चेत्कृपा। प्रभु की कृपा हो तो दोष भी गुण हो जाता है। द्रव्येण सर्वे वशाः। | धन से सब अधीन हो जाते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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