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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ६८५ ] - - - - म चाण्डालोऽपि नरः पूज्यो यस्यास्ति विपुलं । अति धनवान् चाण्डाल भी पूज्य है। - धनम् । चित्तमेतदमलीकरणीयम् । इस चित्त को निर्मल करना चाहिए। चित्त वाचि क्रियायां च साधूनामेकरूपता। सज्जनों के मन, वाणी और कर्म में समानता रहती है। चित्रा गतिः कर्मणाम्। कर्मों की गति न्यारी। चिन्ता जरा मनुष्याणाम् । चिन्ता मनुष्यों का बुढ़ापा है। चिन्तासमं नास्ति शरीरशोषणम् । चिन्ता के समान शरीर को कोई भी नहीं सुखाता। चौराणामनृतं बलम् । झूठ ही चोरां का बल है। चौरे गते वा किमु सावधानम् ! चोर के भाग जाने पर सावधानता से क्या! छिद्रेष्वना बहुलीभवन्ति । दोषों के कारण अनेक विपत्तियाँ आ घेरती हैं। जठरं को न बिभर्ति केवलम् ! केवल अपना पेट कौन नहीं भर लेता ! जपतो नास्ति पातकम् ! जप करने वाला पाप-मुक्त रहता है। जरा रूपं हरति । बुढ़ापा सौन्दर्य का नाशक है। जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः।। बूंद-बूंद करके घड़ा भर जाता है। जातस्य हि ध्रुवो सुत्युः। उत्पन्न व्यक्ति की मृत्यु अटल है। जातापत्या पति द्वष्टि। संतानवती नारी पति से द्वेष करती है। जातो जातो नवाचाराः। प्रत्येक जाति के आचरण अलग-अलग होते हैं । जानन्ति पशवो गन्धात् । पशु गन्ध से पहचान जाते हैं । जामाता दशमो ग्रहः। दामाद दसवाँ ग्रह है। जारस्त्रीणां पतिः शत्रः। कुलटा को पति शत्रु प्रतीत होता है। जितक्रोधेन सर्व हि जगदेतद् विजीयते। क्रोध का विजेता जगद्विजयी होता है । (कथा०) जीवन् हि धीरोऽभिमतं किं नाम न यदा- धैर्यशाली व्यक्ति जीवित रहे तो प्रत्येक अभी.. प्नुयात् । (कथा) प्राप्त कर लेता है। जीवो जीवस्य जीवनम् । प्राणी प्राणी का जीवन है। ज्ञानस्याभरणं क्षमा । क्षमा ज्ञान का भूषण है। ज्येष्ठभ्राता पितुः समः। बड़ा भाई पिता के तुल्य है। झटिति पराशयवेदिनो हि विज्ञाः । (नैषध०) विद्वान लोग दूसरे के भाव को तुरन्त जान जाते हैं। तक्रान्तं खलु भोजनम् ।। भोजन के अन्त में मछे का सेवन करे। तपोऽधीनानि श्रेयांसि, झपायोऽन्यो न | सुख-सुविधाएँ तपस्या से ही प्राप्त होती हैं, विद्यते । (कथा) किसी अन्य उपाय से नहीं। तपोऽधीना हि संपदः । ( कथा०) संपत्तियाँ तप के अधीन हैं। तमस्तपति धर्माशी कथमाविर्भविष्यति ? | सूर्य के चमकने पर अन्धकार कैसे प्रकट होगा ? (अभिज्ञान०) तस्करस्य कुतो धर्मः! चोर का धर्म कहाँ! तस्य तदेव मधुरं यस्य मनो यत्र संलग्नम्। जिसका मन जिसमें लगा हो, उसे वही प्रिय होता है। तिष्ठत्येकां निशां चन्द्रः श्रीमान् संपूर्ण- १. शोभान्वित पूर्ण चाँद तो एक ही रात रहता मंडलः। है। २. चार दिन की चाँदनी और फिर. अँधेरी रात है। For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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