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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ६८३ | कालेन फलते तीर्थ, सद्यः साधुसमागमः । का विद्या कवितां विना ? काश्मीरजस्य कटुतापि नितान्तरस्या । का बिजनी विना हंस, करन हंसोऽब्जिनीं विना ? ( कथा० ) किं हि न भवेदीश्वरेच्छया ? ( कथा० ) किं किं करोति न निरर्गलतां गता स्त्री ? किञ्चित्कालोपभोग्यानि यौवनानि धनानि च। कुराजान्तानि राष्ट्राणि । कुरूपता शोलतया विराजते । कुरूपी बहुचेष्टिकः । कुलवधूः का स्वामिभक्तिं विना ? कुले कश्चिद्धन्यः प्रभवति नरः श्लाध्य महिमा | कुवत्रता शुभ्रतया विराजते । कुवाक्यान्तं च सौहृदम् । कुशिष्य मध्यापयतः कुतो यशः ? कृतघ्नानां शिवं कुतः ? कृतार्थः स्वामिनं द्वेष्टि । कृपणानुसारि च धनम् । ad कस्यास्ति सौहृदम् ? केचिदज्ञानतो नष्टाः । केचिन्नष्टाः प्रसादतः । केवलोऽपि सुभगो नवाम्बुदः किं पुनस्त्रिदशचापलाञ्छितः ? (खु० ) केषां न स्यादभिमतफला प्रार्थना ह्युत्तमेषु ! ( मेघ० ) hari नैषा कथय कविताकामिनी कौतुकाय ! को जानाति जनो जनार्दनमनोवृत्तिः कदा कीदृशी ? कोऽतिभारः समर्थानाम् । को धर्मः कृपया विना ? को न याति वशं लोके मुखे पिण्डेन पूरितः । तीर्थ का फल विलम्ब से परन्तु सत्संगति का फल शीघ्र प्राप्त होता है। कविता के बिना विद्या कैसी ? केसर की कड़वाहट भी अत्यन्त प्यारी होती है । हंस-हीन सरसी कैसी और सरसी-हीन हंस कैसा ? ईश्वर की इच्छा से क्या नहीं हो सकता ? निरंकुश नारी क्या-क्या नहीं करती ? यौवन तथा सम्पदा के सुख कुछ ही काल तक लूटे जा सकते हैं । बुरे राजाओं से राष्ट्रों का नाश हो जाता है । सुन्दर शील से कुरूपता भी खिल उठती है । कुरूप मनुष्य बहुत चेष्टाएँ करता है । पतिभक्ति-विहीन कुलवधू कैसी ? कुल में कोई ही धन्य व्यक्ति यशस्वी प्रभु होता है। फटे-पुराने वस्त्र भी स्वच्छ रहने से खिल उठते हैं। कुवचनों से मित्रता नष्ट हो जाती है । कुशिष्य के अध्यापक को यश कहाँ ? कृतघ्नों का कल्याण कहाँ ? पूर्ण- मनोरथ व्यक्ति स्वामी से द्वेष करता है । धन कृपण के पीछे चलता है। निर्बल या निर्धन से कौन मित्रता करता है ? कई लोग अज्ञान से नष्ट हो गये । कई लोग प्रमाद से नष्ट हो गये । नया मेघ वैसे भी सुन्दर होता है; परन्तु जब वह इन्द्रधनुष से युक्त हो तब तो बात ही क्या ? उत्तम जनों के समक्ष की हुई किनकी प्रार्थना सफल नहीं होती ! कहो तो, यह कविता-कामिनी किन के मन में कौतुक उत्पन्न नहीं करती ! कौन जानता है कि भगवान् के मन की वृत्ति कब कैसी होती है ? बलवानों के लिये कोई भी भार अधिक नहीं है । दया के बिना धर्म कैसा ? संसार में जिसके मुँह में ग्रास डाल दो, वहीं वश में हो जाता है। को नाम राज्ञां प्रियः ! कोsर्थान् प्राप्य न गर्वितः ! aise तो गौरवम् ? को विदेशः समर्थानाम् । राजाओं का प्यारा कौन होता है ! धन पाकर कौन गर्वित नहीं होता ! किस याचक को गौरव प्राप्त हुआ ? समर्थ व्यक्ति के लिये विदेश कौन-सा है । कोहि मार्गममार्ग वा व्यसनान्धो निरीक्षते ? कौन व्यसनान्ध मनुष्य सुपथ - कुपथ का ध्यान ( कथा० ) रखता है ? For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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