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कालेन फलते तीर्थ, सद्यः साधुसमागमः ।
का विद्या कवितां विना ? काश्मीरजस्य कटुतापि नितान्तरस्या । का बिजनी विना हंस, करन हंसोऽब्जिनीं विना ? ( कथा० )
किं हि न भवेदीश्वरेच्छया ? ( कथा० ) किं किं करोति न निरर्गलतां गता स्त्री ? किञ्चित्कालोपभोग्यानि यौवनानि धनानि
च।
कुराजान्तानि राष्ट्राणि । कुरूपता शोलतया विराजते । कुरूपी बहुचेष्टिकः । कुलवधूः का स्वामिभक्तिं विना ? कुले कश्चिद्धन्यः प्रभवति नरः श्लाध्य
महिमा |
कुवत्रता शुभ्रतया विराजते । कुवाक्यान्तं च सौहृदम् । कुशिष्य मध्यापयतः कुतो यशः ? कृतघ्नानां शिवं कुतः ? कृतार्थः स्वामिनं द्वेष्टि । कृपणानुसारि च धनम् । ad कस्यास्ति सौहृदम् ? केचिदज्ञानतो नष्टाः । केचिन्नष्टाः प्रसादतः । केवलोऽपि सुभगो नवाम्बुदः किं पुनस्त्रिदशचापलाञ्छितः ? (खु० ) केषां न स्यादभिमतफला प्रार्थना ह्युत्तमेषु ! ( मेघ० ) hari नैषा कथय कविताकामिनी कौतुकाय !
को जानाति जनो जनार्दनमनोवृत्तिः कदा कीदृशी ?
कोऽतिभारः समर्थानाम् । को धर्मः कृपया विना ?
को न याति वशं लोके मुखे पिण्डेन पूरितः ।
तीर्थ का फल विलम्ब से परन्तु सत्संगति का फल शीघ्र प्राप्त होता है।
कविता के बिना विद्या कैसी ?
केसर की कड़वाहट भी अत्यन्त प्यारी होती है । हंस-हीन सरसी कैसी और सरसी-हीन हंस
कैसा ?
ईश्वर की इच्छा से क्या नहीं हो सकता ? निरंकुश नारी क्या-क्या नहीं करती ? यौवन तथा सम्पदा के सुख कुछ ही काल तक लूटे जा सकते हैं ।
बुरे राजाओं से राष्ट्रों का नाश हो जाता है । सुन्दर शील से कुरूपता भी खिल उठती है । कुरूप मनुष्य बहुत चेष्टाएँ करता है । पतिभक्ति-विहीन कुलवधू कैसी ?
कुल में कोई ही धन्य व्यक्ति यशस्वी प्रभु होता है।
फटे-पुराने वस्त्र भी स्वच्छ रहने से खिल उठते हैं। कुवचनों से मित्रता नष्ट हो जाती है । कुशिष्य के अध्यापक को यश कहाँ ? कृतघ्नों का कल्याण कहाँ ?
पूर्ण- मनोरथ व्यक्ति स्वामी से द्वेष करता है । धन कृपण के पीछे चलता है। निर्बल या निर्धन से कौन मित्रता करता है ? कई लोग अज्ञान से नष्ट हो गये । कई लोग प्रमाद से नष्ट हो गये । नया मेघ वैसे भी सुन्दर होता है; परन्तु जब वह इन्द्रधनुष से युक्त हो तब तो बात ही क्या ? उत्तम जनों के समक्ष की हुई किनकी प्रार्थना सफल नहीं होती !
कहो तो, यह कविता-कामिनी किन के मन में कौतुक उत्पन्न नहीं करती ! कौन जानता है कि भगवान् के मन की वृत्ति कब कैसी होती है ?
बलवानों के लिये कोई भी भार अधिक नहीं है । दया के बिना धर्म कैसा ?
संसार में जिसके मुँह में ग्रास डाल दो, वहीं
वश में हो जाता है।
को नाम राज्ञां प्रियः ! कोsर्थान् प्राप्य न गर्वितः ! aise तो गौरवम् ? को विदेशः समर्थानाम् ।
राजाओं का प्यारा कौन होता है ! धन पाकर कौन गर्वित नहीं होता ! किस याचक को गौरव प्राप्त हुआ ? समर्थ व्यक्ति के लिये विदेश कौन-सा है ।
कोहि मार्गममार्ग वा व्यसनान्धो निरीक्षते ? कौन व्यसनान्ध मनुष्य सुपथ - कुपथ का ध्यान
( कथा० )
रखता है ?
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